भारतीय चुनावों में ईवीएम का प्रयोग एक बड़ा बदलाव है। विभिन्न आलोचनाओं के बीच 2004 से चुनाव आयोग ने पूरे भारत में चुनावों के दौरान इनका प्रयोग करने का निर्णय लिया है। ईवीएम के प्रयोग से चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी और सक्षम बनाने का प्रयास किया गया है।
भारत में मतदान के लिए प्रयोग की जा रहीं EVM मशीनें सबसे पहले गोवा के चुनावों में 1999 में इस्तेमाल की गई थीं। सन 2004 में चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल को मंजूरी दी थी। ईवीएम से पहले भारत में बैलट पेपर के द्वारा वोटिंग की जाती थी और वोटों की मैन्युअल गिनती की जाती थी।
क्या है ईवीएम?
ईवीएम एक ऐसी वोटिंग सिस्टम है जिसके जरिये मतदाता इलेक्ट्रॉनिक रूप से अपनी पसंदिता पार्टी या उम्मीदवार को वोट दे सकता है। ईवीएम मशीनों पर क्षेत्र के चुनाव लड़ रहे सभी उम्मीदारों के चुनाव चिन्ह इंगित रहते हैं। मतदाता अपने पसंद के उम्मीदवार के सामने का बटन दबाकर उसे अपना वोट देता है।
सभी ईवीएम केबल के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक बैलट बॉक्स से कनेक्ट होती हैं। किसी वोटर के द्वारा एक बार वोट डालने के बाद ये ईवीएम मशीन खुद को लॉक कर लेती है। इससे यह सुनिश्चित होता है के एक वोटर एक बार ही वोट डाल पायेगा।
ईवीएम से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें इस प्रकार हैं:
ईवीएम को चलाना बहुत आसान होता है। पूर्व मतदान प्रणाली में जहाँ पेपर पर उम्मीदवार के नाम के आगे निशान लगाकर फिर उसे मोड़ने के बाद मतपेटी में डालना पड़ता था, वहीँ ईवीएम की सहायता से मतदाताओं को अपने उम्मीदवार के नाम के आगे का बटन दबाना होता है। वोटिंग की यह प्रणाली भारत के ग्रामीण और निरक्षर मतदाताओं के इस्तेमाल के लिए भी काफी सुगम है।
- जैसे ही किसी मतदाता का मत दर्ज होता है मशीन में लगी लाल बत्ती जल उठती है और एक लंबी बीप की ध्वनि सुनाई देती है। इससे मतदाता आश्वस्त हो जाता है कि उसका मत सफलतापूर्वक ईवीएम में दर्ज हो चुका है।
- इसके द्वारा मतदान में होने वाली धांधली को काफी हद तक काम किया जा सकता है। पहले पोलिंग बूथ पर कब्ज़ा जैसी ख़बरें आती थी जिसके कारण फेक मतदान होता था। इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए ईवीएम से वोटिंग एक अच्छा ऑप्शन है।
- ईवीएम मशीन के माध्यम से कोई भी मतदाता दो बार मतदान नही कर सकता। ईवीएम मशीन में इस तरह की सेटिंग की जाती कि इससे फेक मतदान की संभावना को पूर्ण रूप से नष्ट किया जा सके।
- भारत के सभी चुनावों में ईवीएम मशीन का प्रयोग किया जाता है। चुनाव शुरू होने से पहले मशीनों में सैंपल मतदान के आधार पर जांच की जाती है। मशीन के उचित तरह से काम करने की पुष्टि होने पर ही उसे मतदान के लिए उपयोग किया जाता है।
- ईवीएम बिना बिजली के कार्य करती हैं। इनमें बैटरी लगी होती है जिसके कारण पावर कट के दौरान भी मतदान में व्यवधान से बचा जा सकता है।
- ईवीएम में एक कण्ट्रोल यूनिट और एक बैलट यूनिट होती है जो फाइव-मीटर केबल के सहारे जुड़ी होती हैं। बैलट यूनिट में वोटर के द्वारा वोट डाला जाता है जबकि कण्ट्रोल यूनिट वोट को रिकॉर्ड करके रिजल्ट को डिस्प्ले करती है।
- उम्मीदवारों की संख्या 64 से कम होने पर ईवीएम के प्रयोग से चुनाव कराये जा सकते हैं। एक ईवीएम मशीन 3840 मतों को रिकॉर्ड कर सकती है। एक मतदान केंद्र में मतदाताओं की अधिकतम संख्या 1500 तक होती है, इस लिहाज से ईवीएम की मत रिकॉर्ड करने की क्षमता आवश्यकता से काफी अधिक है।
ईवीएम मशीन के फायदे इस प्रकार हैं:
- बैलट पेपर की तुलना में ईवीएम मशीन का प्रयोग सस्ता है। 1990 के दौरान जब इन मशीनों को ख़रीदा गया तो इनकी कीमत 5500 रूपये थी। यदि लंबी अवधि के लिए देखा जाए तो इनका प्रयोग सस्ता है।
- ईवीएम मशीनों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाना ले जाना काफी आसान होता है क्योंकि उनका वजन काफी कम होता है।
- वोटों की काउंटिंग ईवीएम मशीनों के प्रयोग से बहुत आसान हो गई है। बैलट पेपर से मतों की गणना करने के लिए बड़ी संख्या में कर्मचारियों की आवश्यकता होती थी और परिणाम के लिए भी लम्बे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी।
- भारत के ग्रामीण इलाकों में कई मतदाता अभी भी निरक्षर हैं, ईवीएम के प्रयोग से उन्हें भी मतदान करने में काफी सहूलियत है।
- भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यहाँ पर सफलतापूर्वक चुनाव संपन्न कराना एक बहुत बड़ा कार्य है। ईवीएम के प्रयोग से इस कार्य को सुगमता, पारदर्शिता और दक्षता से करने का प्रयास चुनाव आयोग के द्वारा किया गया है।