गृहमंत्री बनने के तुरंत बाद बिना समय गंवाए अमित शाह ने महत्वपूर्ण निर्णय लेने शुरू कर दिए हैं। आर्टिकल 370 और 35 ए को खत्म करने की बात तो चुनाव प्रचार से ही चर्चा में है, लेकिन अब जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव क्षेत्रों के लिए केंद्र सरकार द्वारा परिसीमन कराये जाने की चर्चा भी गर्म हो गई है। अमित शाह ने गृह मंत्रालय का कार्यभार संभालते ही जम्मू कश्मीर के राज्यपाल से बैठक की और कश्मीर को लेकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया।
भाजपा चाहती है की जम्मू कश्मीर में परिसीमन कराया जाना चाहिए। इस बारे में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कवीन्द्र गुप्ता राज्यपाल को पत्र लिख चुके हैं। गृहमंत्री अमित शाह इसके लिए आयोग के गठन पर भी विचार कर रहें हैं। भाजपा का मानना है कि राज्य में विधानसभा सीटों के लिए परिसीमन कराने से जम्मू, कश्मीर और लद्दाख क्षेत्रों के साथ न्याय होगा।
बीजेपी के लिए फायदे का गणित
जम्मू कश्मीर में विधानसभा की कुल 111 सीटें हैं। लेकिन यहाँ महज 87 सीटों पर चुनाव होते हैं। यहाँ की 24 सीटें पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र में हैं। बीजेपी के अनुसार यदि प्रदेश में परिसीमन कराया जाता है तो खाली पड़ी 24 सीटें उसकी मज़बूती वाले जम्मू क्षेत्र से जुड़ेंगी। जब 2014 में विधानसभा चुनाव हुए थे तो जम्मू की 37 विधानसभा सीटों से 25 में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी।
जम्मू कश्मीर के संविधान के मुताबिक यहाँ हर 10 साल में परिसीमन होना था। लेकिन 2002 में तात्कालिक फारूक अब्दुल्ला सरकार ने इस पर 2026 तक के लिए रोक लगा दी थी। प्रदेश में आख़िरी बार 1995 में परिसीमन कराया गया था। अब बीजेपी के फिर से परिसीमन कराने के निर्णय से क्षेत्र की राजनीति गर्म हो गई है। इस फैसले का कांग्रेस और जम्मू कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी ने समर्थन किया है, जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी इसका विरोध कर रही हैं।
जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने परिसीमन की आलोचना करते हुए कहा कि यह सांप्रदायिक आधार पर राज्य को बांटना है। उन्होंने कहा कि वे भारत सरकार की इस योजना के बारे में सुनकर परेशान हैं। उनके अनुसार भारत सरकार पुराने घावों को भरने की बजाय कश्मीरियों का दर्द बढ़ा रही है।
Distressed to hear about GoIs plan to redraw assembly constituencies in J&K. Forced delimitation is an obvious attempt to inflict another emotional partition of the state on communal lines.Instead of allowing old wounds to heal, GoI is inflicting pain on Kashmiris
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) June 4, 2019
महबूबा मुफ्ती के इस बयान पर बीजेपी सांसद और पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर ने ट्विटर पर पलटवार किया है। उन्होंने कहा कि वे कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिए बातचीत के पक्ष में है। लेकिन अमित शाह के इस फैसले को कठोर बताना हास्यास्पद है। गंभीर ने लिखा, "इतिहास ने हमारा धैर्य और संयम देखा है, लेकिन अब हमारे लोगों की सुरक्षा अगर बलपूर्वक होती है तो होने दो।"
While I am all for a talk-based solution to Kashmir problem but for @mehboobamufti to term Shri @AmitShah’s process as “brute” is “ridiculously naive”. History has been witness to our patience and endurance. But if oppression ensures security for my people, then so be it.
— Gautam Gambhir (@GautamGambhir) June 3, 2019
अब देखना ये है कि कश्मीर में प्रचंड बहुमत से केंद्र में सरकार बनाने वाली बीजेपी 2002 में एनसीपी सरकार के परिसीमन पर 2026 तक की रोक फैसले को बदल पाती है या नही।