49 साल के हुए राहुल गांधी: पार्टी में कद बढ़ता गया लेकिन पार्टी का कद देश में घटता गया

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Nikhil Talwaniya
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49 साल के हुए राहुल गांधी: पार्टी में कद बढ़ता गया लेकिन पार्टी का कद देश में घटता गया

लोकसभा चुनाव 2019 में करारी हार के बाद कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने की पेशकश कर चुके राहुल गांधी आज 49 वर्ष के हो गए हैं। बहरहाल अध्यक्ष पद से इस्तीफ़े की पेशकश का यह कदम दर्शाता है कि वे कांग्रेस पार्टी को बचाने के लिए अपनी तरकश में मौजूद सभी तीरों का इस्तेमाल कर चुके हैं लेकिन वे अब खुद को पार्टी के मुख्य नेतृत्वकर्ता के रूप में योग्य नहीं मानते हैं। राहुल गांधी के नेतृत्व में लगातार हार के बावजूद पार्टी और पार्टी के वरिष्ठ नेता उन्हें अध्यक्ष पद से नही हटाना चाहते हैं। पार्टी का कहना है कि राहुल गांधी का विकल्प तलाशना मुश्किल है बहरहाल अभी वे ही पार्टी अध्यक्ष रहेंगे।

राहुल गांधी का जन्म 19 जून 1970 में हुआ था। आलोचकों के अनुसार राहुल गांधी विरासत में मिली राजनीति को अपने पक्ष में उपयोग नही कर पाए। राहुल का गांधी परिवार का होने के कारण उन्हें जो राजनीतिक लाभ और पद मिला उसे लोगों ने उनकी मेहनत का न कहकर आलोचना की। इंटरनेट और सोशल मीडिया पर राहुल गांधी के विरोध में बहुत सारा कंटेंट परोसा गया। आलोचनाओं की इस सुनामी ने राहुल गांधी खुद की इमेज को तो नुकसान पहुँचाया ही साथ में ये उनकी पार्टी को भी ले डूबा। गर्त में पहुंची कांग्रेस पार्टी अब विचार कर यही है कि कैसे इस निराशा और अंधकार से बाहर निकला जाए।

क्या राहुल गांधी एक अनिच्छुक राजनेता है?

राहुल गांधी की आलोचना करने वाले कहते हैं कि राहुल गांधी अनिक्छुक राजनेता हैं। उनके अंदर राजनीति के लिए वह जुनून और समर्पण का अभाव दिखता है जो पूर्ववर्ती गांधी-नेहरू परिवार के नेताओं के अंदर देखा गया था। राहुल गांधी के भाषणों में रिसर्च और गहराई का सख्त अभाव दिखा। उनके शब्दों का चयन इस तरह होता था कि या तो उसका मजाक बन जाता था या कुछ अटपटा मतलब निकलता था। उनके भाषणों से जनता ने उनके साथ कभी जुड़ाव महसूस नही किया। लोग कांग्रेस पार्टी से लगाव के कारण उनकी चुनावी रैलियों में गए लेकिन निराश होकर लौटे। वही दूसरी ओर नरेंद्र मोदी अपने भाषणों से लोगों का दिल जीत लेते थे। नरेंद्र मोदी का भाषण सुनने के बाद लोग आँखों में चमक और सपने लिए घर लौटते थे। नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच लोगों को ज़मीन आसमान का अंतर दिखा।

राहुल गांधी की नागरिकता पर भी थे सवालिया निशान

2019 के चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी पर सुब्रमण्यम स्वामी ने दोहरी नागरिकता का इल्जाम लगा दिया था। उन पर ब्रिटेन और भारत की दोहरी नागरिकता होने का आरोप लगा था। सुब्रमण्यम स्वामी राहुल पर बैकऑप्स लिमिटेड कंपनी के मालिक होने तथा रिटर्न फाइल करने के दौरान खुद को ब्रिटिश नागरिक बताने का आरोप लगाया था। हांलाकि राहुल गांधी ने बाद में अपनी भारतीयता साबित की, लेकिन तब तक उनकी छवि को बहुत नुकसान पहुंच चुका था।

क्या राहुल गांधी कांग्रेस के नेतृत्व के लिए अपरिपक्व हैं?

2017 में कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के साथ ही राहुल गांधी पर बड़ी ज़िम्मेदारियाँ आ गई थीं। इतनी पुरानी पार्टी के अध्यक्ष होने के बावजूद राहुल गांधी लोगों को कांग्रेस से जोड़ पाने में असमर्थ रहे। इसके विपरीत भाजपा ने देश के हर वर्ग के लोगों की आवश्यकताओं और भावनाओं को समझा और उसी के अनुरूप अपनी चुनावी रणनीतियां बनायीं। राहुल गांधी लगातार गलती करते गए और उनके विरोधी लगातार उसका राजनीतिक लाभ लेते गए। राहुल गांधी की बड़ी भूलों के बाद भी कांग्रेस ने उन्हें पार्टी के शीर्ष पर बनाए रखा और लोगों ने निष्कर्ष निकाला कि राहुल गांधी को जो मिला है वह विरासत ही है और उन्होंने स्वयं कुछ हासिल नही किया है। इस बात के कारण भी राहुल गांधी की छवि बहुत अधिक ख़राब हो गई। अपनी ग़लतियों से कुछ सीखने की बजाय राहुल गांधी उन्हें दोहराते रहे और उन्हें इसका नतीजा 2019 के आम चुनाव में भयानक हार के रूप में मिला।

स्मृति ईरानी ने भी राहुल के होश उड़ा दिये

राहुल गांधी को अमेठी में अपनी हार का अंदेशा हो गया था। उन्होंने अपने लिए सुरक्षित रास्ता अपनाया और केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। विरोधी पार्टी भाजपा और स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी के इस निर्णय को कायरता करार दिया। स्मृति ने जनता के साथ जुड़ने का जो काम किया उससे राहुल के प्रति अमेठी के लोगों में सम्मान और लगाव कम हो गया। राहुल गांधी राजनीति के रणभूमि में परास्त हो गए। उनका गढ़ अमेठी भी उनके हाथ से चला गया।

आलोचकों का कहना है राहुल गांधी ने अपने विरोधियों को पूरा मौका दिया और उन्होंने ऐसे मौकों को लपकने में कोई कसर नही छोड़ी। लिहाजा राहुल गांधी कांग्रेस को लेकर डूब गए। फिलहाल राहुल गांधी कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ना चाहते हैं, वे गांधी परिवार से अलग किसी नेता को कांग्रेस अध्यक्ष का पद देना चाहते हैं। कांग्रेस अभी उन्हें मनाने में लगी है। पार्टी दमदार नेतृत्व के अभाव में बिखरती जा रही है और देश की जनता की नजर में उसकी प्रासंगिकता घटती जा रही है।

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