खुद की मूर्ती लगाने पर मायावती ने सुप्रीम कोर्ट से कहा “मेरी मूर्ति लगे ये जनता की इच्छा थी”

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Nikhil Talwaniya
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खुद की मूर्ती लगाने पर मायावती ने सुप्रीम कोर्ट से कहा “मेरी मूर्ति लगे ये जनता की इच्छा थी”

वर्ष 2009 में सुप्रीम कोर्ट में रविकांत नामक व्यक्ति ने एक याचिका लगायी थी जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की गई थी कि मायावती ने अपने शासनकाल में जो स्वयं और हाथियों की मूर्ति के निर्माण में जो खर्च किये थे उसे बहुजन समाज पार्टी से वसूला जाए। इसकी सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने जवाब में कहा - कोर्ट का विचार है मायावती को मूर्तियों पर किये गए खर्च को अपने पास से सरकारी खजाने में जमा कर देना चाहिए।

रविकांत में अपनी याचिका में यह भी लिखा था कि सार्वजनिक धन का प्रयोग अपनी मूत्रियाँ बनवाने और किसी भी राजनैतिक दल के प्रचार के लिए नहीं किया जा सकता है। याचिका कर्ता ने आरोप लगाते हुए कहा की मायावती उस समय उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री थी और उन्होंने अपने स्वयं के और पार्टी के महिमागान करने के इरादे से सरकारी खजाने मे से करोड़ों रूपये का अपव्यय किया है।

इस पूरे वाक्ये पर मायावती ने आज सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपना जवाब प्रस्तुत किया जिसमे उन्होंने कहा “यह लोगों की इच्छा थी” माया ने मूर्तियों पर खर्च की गई सरकारी रकम को न्यायोचित ठहराते हुए हलफनामे में कहा है कि विधानसभा में चर्चा के बाद मूर्तियां लगाई और इसके लिए बाक़ायदा सदन से बजट भी पास कराया गया था। मायावती ने अपने हलफनामे में कहा है कि उनकी मूर्तियां लगाना जनभावना थी। साथ ही यह बीएसपी के संस्थापक कांशीराम की भी इच्छा थी। माया ने अपने जवाब में कहा कि दलित आंदोलन में उनके योगदान के चलते मूर्तियां लगवाई गईं। ऐसे में पैसे लौटाने का सवाल ही नहीं उठता है।

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