श्यामा प्रसाद मुखर्जी: एक मानवतावादी नेता जो अखंड भारत के लिए अंतिम सांस तक लड़े

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Punctured Satire
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श्यामा प्रसाद मुखर्जी: एक मानवतावादी नेता जो अखंड भारत के लिए अंतिम सांस तक लड़े

डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई को कलकत्ता के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही एक मेधावी छात्र थे। उन्होंने 1923 में क़ानून की डिग्री हासिल की थी तथा 1926 में वे बैरिस्टर बन गए थे। वे सिर्फ 33 वर्ष की आयु में ही कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बन गए थे। वे एक विचारक और शिक्षाविद के रूप में प्रसिद्ध होने लगे थे।

डॉक्टर मुख़र्जी ने देश में राष्ट्रवाद की अलख जगाने के लिए राजनीति में प्रवेश किया था। वे सिद्धांतवाद और मानवतावाद के समर्थक थे। वे बंगाल को मुस्लिम लीग की दूषित राजनीति से बचाना चाहते थे। उन्होंने बंगाल के विभाजन के समय मुस्लिम लीग के प्रयासों को असफल कर दिया था। वे हिंदुओं के राजनीतिक हितों की रक्षा तथा देश की अखंडता के लिए डट कर लड़ते रहे। उन्होंने गैर-कांग्रेसी हिंदुओं के साथ मिलकर प्रगतिशील गठबंधन बनाया था। वे वीर सावरकर के राष्ट्रवाद से बहुत प्रभावित थे। इसलिए वे हिन्दू महासभा में भी शामिल हो गए।

डॉक्टर मुखर्जी धर्म के आधार पर विभाजन के कट्टर विरोधी थे। वे सांस्कृतिक एकता के पक्षधर थे। वे इस बात में विश्वास करते थे कि हम सब एक हैं और हमारे भीतर कोई भेद नही है। अपने विचारों और कार्यों के कारण लोगों के दिल में उनके लिए अथाह प्यार और सम्मान की भावना थी।

एक ओर जहाँ कांग्रेस नेता ब्रिटिश सरकार की विभाजन की नीति को स्वीकार करने जा रहे थे, वहीं डॉक्टर मुखर्जी ने इसका विरोध किया। उन्होंने बंगाल का विभाजन कराया और आधा बंगाल और आधा पंजाब भारत के लिए बचा लिया। आज़ाद भारत में उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल करने का अनुरोध किया गया। उन्होंने उद्योग मंत्रालय की ज़िम्मेदारी भी संभाली थी। उनका कांग्रेस नेताओं के साथ मतभेद हमेशा बना रहा फलत: उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया और अक्टूबर 1951 में भारतीय जन संघ की नींव रखी।

डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी जम्मू कश्मीर को देश का अभिन्न अंग बनाये जाने के पक्षधर थे। उन्हें कश्मीर के लिए अलग झंडे और संविधान की मांग स्वीकार्य नही थी। वे धारा-370 को भी समाप्त करवाना चाहते थे। उन्होंने जम्मू कश्मीर में भारत के संविधान के लागू करने का पुरजोर समर्थन किया और संकल्प लिया कि वे जम्मू कश्मीर के लोगों को भारत का संविधान प्राप्त करवाएंगे भले ही उन्हें इसके लिए अपनी जान ही क्यों ना देनी पड़े। जब वे बिना परमिट के जम्मू कश्मीर की यात्रा पर गए तो उन्हें वहां नजरबंद कर दिया गया। 23 जून के दिन रहस्मयी परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। डॉक्टर ने हार्ट अटैक को उनकी मौत की वजह बताया।

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