पड़ोसी देश श्रीलंका में हाल ही में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए हैं जिसमे गोटाभाया राजपक्षे पर वहां की जनता ने विश्वास जताया है। सात महीने पहले ईस्टर के मौके पर इस्लामी चरमपंथियों द्वारा चर्च में किए गए सिलसिलेवार बम धमाकों के बाद श्रीलंका की बदली बदली फिजा में गोटाभाया राजपक्षे के राष्ट्रपति चुने जाने से श्रीलंका के मुस्लिम समुदाय के लोग खुश नहीं हैं। यहाँ के मुसलमानों में गोटाभाया को लेकर वैसा ही डर है जैसा अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प और भारत में नरेंद्र मोदी को लेकर मुसलमानों में कभी हुआ करता था।
इस डर के पीछे की वजह स्थानीय मुसलमानों द्वारा गोटाभाया राजपक्षे को उदार नहीं मानना है। यहाँ के मुसलमान सजीता प्रेमदासा को ज्यादा उदार मानते हैं। मुसलमानों ने प्रेमदासा को वोट दिया था पर सात महीने पहले हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के बाद श्रीलंका में मुसलमानों के खिलाफ पैदा हुए गुस्से की वजह से श्रीलंका के गैरमुस्लिम जनता ने गोटाभाया राजपक्षे पर भरोसा जताया।
गोटाभाया राजपक्षे को श्रीलंकाई जनता इस प्रकार के नेता के तौर पर देख रही है जो इस्लामिक चरमपंथ को खत्म कर सकते हैं। गौरतलब है की गोटाभाया रक्षा मंत्री के तौर पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं और श्रीलंका से लिट्टे के खात्मे में भी गोटाभाया का योगदान अहम रहा था।
गोटाभाया राजपक्षे के समर्थकों का कहना है कि गोटाभाया का राष्ट्रपति बनना श्रीलंका के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ है पर मुस्लिम समुदाय के लोगों की सोच इसके इतर है। श्रीलंकाई मुसलमान सरेआम बोलने से घबराते हैं लेकिन वो विश्वास से कहते हैं कि वो राजपक्षे की जीत से डरे हुए हैं। उनके अनुसार राजपक्षे बहुसंख्यक बौद्ध समुदायों के हितों को बढ़ावा देते नज़र आए हैं। गोटाभाया के आलोचक उन पर मुस्लिम विरोधी चरमपंथियों को बचाने का आरोप लगाते हैं।