सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यक आयोग से कहा 90 दिन में बताएं “क्या है अल्पसंख्यक होने की परिभाषा”

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Rishabh Verma
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सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यक आयोग से कहा 90 दिन में बताएं “क्या है अल्पसंख्यक होने की परिभाषा”

हमारे देश में कौन अल्पसंख्यक है और कौन बहुसंख्यक है इस विषय पर कई चर्चाएं होती रहती हैं। जब भी बहुसंख्यक आबादी की बात आती है तो हिन्दू धर्म मानने वालों को इस श्रेणी में रख दिया जाता है पर वास्तव में कई ऐसे राज्य हैं जहाँ जनसँख्या की दृष्टि से इस्लाम को मानने वाले लोगों की जनसंख्या भी बहुत ज्यादा है ऐसे में किस पैमाने पे आप किस धर्म को अल्पसंख्यक कहते हैं इसका निर्धारण होना जरुरी हो जाता है। इसी निर्धारण के लिए भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।

भाजपा नेता अश्वनी कुमार उपाध्याय ने अपने द्वारा दायर इस जनहित याचिका में मांग की है कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की धारा 2(सी) को निरस्त कर दिया जाए क्योंकि यह धारा मनमानी, अतार्किक और अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करती है। याचिका के मुताबिक इस धारा में केंद्र को किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित कर देने के असीमित और मनमाने अधिकार दे दिये गये हैं।

इस याचिका में यह भी कहा गया है कि हिंदू जो राष्ट्रव्यापी आकंड़ों के अनुसार एक बहुसंख्यक समुदाय है, वे कई पूर्वोत्तर राज्यों में और जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यक है।  याचिका में कहा गया कि जिस राज्य में हिंदू समुदाय अल्पसंख्यक है वे उन लाभों से वंचित है जो कि इन राज्यों में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए मौजूद हैं। अतः अल्पसंख्यक पैनल को इस संदर्भ में ‘अल्पसंख्यक' शब्द की परिभाषा पर पुन: विचार करना चाहिए।

इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ ने बीजेपी नेता एवं वकील अश्विनी उपाध्याय से अल्पसंख्यक पैनल में अपने प्रतिवेदन को फिर से दाखिल करने के भी निर्देश दिए हैं साथ ही निर्देश दिया है की तीन महीने के भीतर इस पर फैसला लिया जाएगा। अब देखना दिलचस्प होगा की अल्पसंख्यक आयोग क्या परिभाषा तय करता है अल्पसंख्यक होने का और सुप्रीम कोर्ट उस परिभाषा से कितना संतुष्ट होती है।

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