उड़नपरी के नाम से मशहूर पीटी उषा ने पूरे विश्व में भारत का नाम रौशन किया है। वे एशिया की सर्वश्रेष्ठ महिला एथलीट मानी जाती है। उन्हें "क्वीन ऑफ इंडियन ट्रेक एंड फील्ड" भी कहा जाता है। पी.टी. उषा का जन्म 27 जून को केरल के कोज़ीकोड जिले के पय्योली गांव में हुआ था। वे वर्ष 1979 में एथलीट से जुड़ीं थीं। केरल सरकार ने महिलाओं के लिए एक खेल स्कूल की शुरुआत की है, जिसमें उषा अपने जिले का प्रतिनिधित्व करती हैं।
1991 में उनकी शादी के बाद पीटी उषा खेलों से दूर हो गयी थीं, लेकिन 2 साल बाद ही उन्होंने दोबारा वापसी कर ली। वे तीन बार मॉस्को 1980, लॉंस एंजेल्स 1984 और सीओल 1988 ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।
एथलीट कोच ओ एम नांबियार ने 1976 में एक पुरस्कार वितरण समारोह में पी टी उषा के भीतर छुपी प्रतिभा को पहचाना था। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि वे पीटी उषा की तेज चाल और शरीर के दुबले आकार के कारण उनसे बहुत प्रभावित हुए। उन्हें पी टी उषा के भीतर एक बहुत अच्छा धावक बनने की संभावना दिखी। इसी वर्ष उन्होंने पी टी उषा की ट्रेनिंग शुरू कर दी। वर्ष 1978 में कोल्लम में जूनियर इंटर स्टेट प्रतिस्पर्धा में 5 मेडल जीतकर उन्होंने अपने कोच के निर्णय को सही साबित कर दिया।
हांलाकि 1980 में मॉस्को ओलंपिक में वे अच्छा प्रदर्शन नही कर सकी, लेकिन 1982 में हुए एशियाड में उन्होंने सिल्वर मेडल जीता। 1983 में कुवैत में हुए एशियन चैम्पियनशीप में उन्होंने 400 मीटर की दौड़ में गोल्ड मेडल जीतकर कीर्तिमान स्थापित कर दिया। वे 1984 में लॉंस एंजेलेस ओलंपिक्स के सेमी फ़ाइनल में भी पहुँचीं लेकिन क़रीबी अंतर से हार गयीं। उन्होंने 1986 के 10 वें एशियन गेम्स में 4 गोल्ड मेडल और 1 सिल्वर मेडल जीता था।
भारत सरकार ने पीटी उषा को खेलों में उनके योगदान की सराहना करते हुए उन्हें 1983 में प्रतिष्ठित अर्जुन अवार्ड दिया। वर्ष 1985 में उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा गया।