धरती दे रही है महाभारत के सबूत: बागपत के सिनौली में खुदाई में निकल रहे हैं महाभारतकालीन अवशेष

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Nikhil Talwaniya
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धरती दे रही है महाभारत के सबूत: बागपत के सिनौली में खुदाई में निकल रहे हैं महाभारतकालीन अवशेष

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा बागपत के सिनौली में खुदाई से कई सामान ऐसे मिले है जिससे कई सवाल खड़े हो गए है। इन अवशेषों को महाभारत काल से जोड़ा जा रहा है। खुदाई के दौरान रथ, कंकाल, शाही शव पेटिकाएं, आभूषण आदि चीजे मिली है। इस खुदाई में 1 चैंबर व 2 शव पेटिकाएं भी निकली है जिसमे जली हुई लकड़ी के अवशेष को देखकर यह अनुमान लगाया जा रहा है की इन्हे मृत देह को स्नान कराने और पूजा-पाठ हेतु इस्तेमाल किया जाता होगा।

पुरातत्वविद इन 3000 - 4000 साल पहले के अवशेषों को देखकर महाभारत काल का अनुमान लगा रहे है क्योंकि उनका कहना है की यह सभ्यता हड़प्पा नहीं है बल्कि इससे भी पहले की सभ्यता है ये।

बता दें कि अभी तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत के सिनौली में 3 बार खुदाई हुई है। पहली खुदाई वर्ष 2005-06 में में हुई। फिर वर्ष 2018 में इसके बाद 2019 में खुदाई का कार्य किया गया। पिछले साल वाले खुदाई स्थल के समीप ही इस बार की खुदाई कराई गई है  जिसमे पिछले साल की भांति इस बार भी यहाँ से 4 पाये वाली 2 शाही शव पेटिकाएं बरामद हुई हैं, यह पेटिकाएं बहुत ज्यादा सुसज्जित हैं।

इन पेटियों में करीब 30-40 साल की दो महिलाओं के कंकाल मिले हैं। साथ ही 1 कंकाल की एक बाह में चूना मिट्टी का बाजूबंद भी मिला है और कंकाल के चेहरे पर सोने का टुकड़ा भी पाया गया है।

इन अवशेषों को देखकर यह अनुमान लगाया जा रहा है की हो सकता है की यह अंतिम संस्कार के वक्त मुंह में डाला गया हो या फिर सोना महिला ने अपनी नाक में पहना होगा। इतना ही नहीं इन शव पेटिका के नीचे चित्रकारी से युक्त बाक्स भी मिला है। जो की श्रंगारदान हो सकता है। साथ ही तांबे की फ्रेम वाला 1 शीशा और सींग से निर्मित एक कंघा भी मिला है।

एक बर्तन भी मिला है जो की तांबे का है। इन पेटिकाओं के समीप एक विशेष चैंबर प्राप्त हुआ है जिसमे हवनकुंड है। इस हवनकुण्ड में जले हुए लकड़ी के टुकड़े भी मिले है।

एएसआई के निदेशक डॉ. संजय मंजुल ने जानकारी दी कि जो विशेष चेंबर इस साल मिले है ऐसा अभी तक किसी भी खुदाई में देखने  को नहीं मिला है। इन पेटिकाओं का निरीक्षण करके यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि शव को यहां नहलाया जाता होगा और पूजा-पाठ, हवन आदि का कार्य होता होगा।

खुदाई से मिले अवशेषों को देखकर पुरातत्वविद का अंदाजा है कि यह महाभारत काल के हो सकते है लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा है।

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