हरियाणा राज्य के महेंद्रगढ़ जिले के खेरी गांव में रहने वाले एक नेत्रहीन शख्स जिनका नाम अजीत यादव है आजकल सुर्ख़ियों में हैं। ये जन्म से तो नेत्रहीन नहीं थे परन्तु उन्हें पांच साल की उम्र में डायरिया हो गया था जिसके कारण उनकी तबियत कुछ ज्यादा ख़राब हो गई और कमजोरी की वजह से उनकी आखों की रोशनी भी चली गई थी। उनकी इस शारीरिक अक्षमता को उन्होंने कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया।
दरअसल अजीत ने नेत्रहीन होने के बावजूद UPSC की परीक्षा को पास करके 208 रैंक हासिल की थी परन्तु उन्हें इस रैंक पर होने के बावजूद सिविल सेवा में कोई पद नहीं दिया गया था। नेत्रहीन होने के कारण उन्हें भारतीय रेलवे में एक अधिकारी पद पर नियुक्त किया गया था।
इससे अजीत दुखी हुए और स्वयं की अक्षमता के कारण मिले इस पद को उन्होंने स्वीकार नहीं किया। अजीत ने सिस्टम द्वारा किये गए भेदभाव का विरोध किया और लड़ाई भी लड़ी। उन्होंने सिस्टम के खिलाफ केस फाइल कर दिया जिसके बाद वर्ष 2010 में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया। केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने आठ सप्ताह के भीतर उन्हें उनकी रैंक के मुताबिक पद पर नियुक्ति करने के आदेश दिए, जिसके फलस्वरूप 14 फरवरी, 2012 को उन्हें अपना कॉल लेटर प्राप्त हो गया।
सिविल सेवा में जाने की प्रेरणा उन्हें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिली थी। जब उन्होंने वर्ष 2015 के एक कार्यक्रम में पीएम मनमोहन सिंह को यह कहते हुए सुना कि IAS के दरवाजे नेत्रहीन नागरिकों के लिए भी खोले जाने चाहिए।