जन्मदिन विशेष: प्रथम महिला आईपीएस जिन्होंने अपने कर्तव्यनिष्ठा से दिखाई देश को नई राह

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जन्मदिन विशेष: प्रथम महिला आईपीएस जिन्होंने अपने कर्तव्यनिष्ठा से दिखाई देश को नई राह

9 जून को अमृतसर में जन्मी किरण बेदी किसी परिचय की मोहताज नही हैं। उन्होंने वो कर दिखाया जो एक महिला के द्वारा करना असंभव माना जा रहा था। उन्होंने 1972 में भारतीय पुलिस सेवा में चयनित होकर इतिहास रच दिया। वे देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी बनीं। आज पुलिस सर्विस में जाने वाली हर महिला के लिए वे एक बड़ी प्रेरणा हैं। पुलिस में अपनी सेवा के दौरान उन्होंने कई उल्लेखनीय कार्य किये जिनके कारण उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया। वर्तमान में वे पुदुचेरी के उप-राज्यपाल के रूप में कार्यरत हैं। वे संयुक्त राष्ट्र संघ के ‘शांति स्थापना ऑपरेशन’ विभाग में नागरिक पुलिस सलाहकार के रूप में भी अपनी सेवाएं दे रही हैं।

किरण बेदी और उनकी बहनों की परवरिश ऐसे परिवार में हुई जहाँ बेटियों को ईश्वर का रूप माना जाता था। पुरुष आधिपत्य वाले समाज में किरण बेदी और उनकी बहनों को स्वाभिमान और स्वतंत्रता से जीने की पूरी छूट मिली। किरण बेदी के माता पिता ने उनके अंदर आत्मानुशासन का गुण विकसित किया जो उनकी सच्ची ताकत बना।

बचपन से ही किरण बेदी को कुछ कर दिखाने का जज़्बा था इसलिए उन्होंने अपने करियर भी परंपरा से हटकर चुना। एक मेधावी छात्रा होने के साथ ही वे अच्छी टेनिस खिलाड़ी भी रही हैं। वे ऑल इंडिया और ऑल एशियन टेनिस की चैंपियन भी रह चुकी हैं। किरण बेदी ने इंग्लिश लिटरेचर में स्नातक तथा राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि हासिल की है। उन्होंने 1993 में 'नशाखोरी और घरेलु हिंसा' में शोधकार्य कर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की है।

जब किरण बेदी दिल्ली में पुलिस आयुक्त के पद पर कार्यरत थीं तब उन्होंने हाथ में तलवार लिए भीड़ का अकेले सामना किया था। उन्होंने साबित कर दिया कि ईमानदार अधिकारी को गुंडा राज से डराया नही जा सकता। उन्होंने तिहाड़ जेल में भी बहुत सार्थक कार्य किये। उन्होंने 7200 कैदियों के जीवन को ऊँचा उठाने के लिए कई सुधारात्मक कदम उठाये। उन्होंने जेल में ही कैदियों के लिए योग, ध्यान और शिक्षा का प्रबंध किया। उन्होंने अपने दृढ़ निश्चय के बल पर तिहाड़ जेल का नक्शा ही बदल दिया।

नेताओं के आगे जी हुजूरी करने वाले तो कई अफसर होते हैं लेकिन ऐसे कर्मठ और कर्तव्यपरायण अफसर कम ही होते हैं जो नेताओं के बड़े कद और रुतबे के आगे भी सच की राह पर अडिग रहते हैं। किरण बेदी के कार्यकाल में एक ऐसा ही अवसर तब आया जब उनके अंदर के स्वाभिमानी अफसर को लोगों ने देखा। ये उस समय की बात है जब किरण बेदी नई दिल्ली की ट्रैफिक कमिश्नर बनी थीं। पार्किंग के नियमों के उल्लंघन के कारण उन्होंने उस समय की सबसे शक्तिशाली नेता और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गाड़ी को भी क्रैन की मदद से हटवा दिया था। इसके लिए इंदिरा गांधी ने उनके समर्पण और ईमानदारी की सार्वजनिक रूप से तारीफ की थी। उन्होंने कहा था देश को आज ऐसे ही अफसर की तलाश है जो साहस के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सके। इस घटना के बाद वे क्रैन बेदी के नाम से भी जानी जाने लगी।

लोग क्या कहेंगे इसकी परवाह किये बिना किरण बेदी ने ईमानदारी और समर्पण की अनूठी मिसाल पेश की। उनके कामों की चर्चा न केवल देश बल्कि विदेशों में भी खूब चली। उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी नवाजा गया। उन्हें प्राइड ऑफ़ इंडिया, मदर टेरेसा मेमोरियल नेशनल अवार्ड और इटली का वुमन ऑफ़ दी ईयर अवार्ड भी दिया गया। उन्हें 1994 में उन्हें एशिया का सबसे प्रतिष्ठित “रेमन मैग्सेसे” अवार्ड भी दिया गया।

प्रथम महिला आईपीएस ऑफिसर किरण बेदी के जीवन पर आधारित डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'यस मैडम सर' भी बन चुकी है। इसका निर्माण ऑस्ट्रेलिया के निर्देशक मेगन डॉनमैन के द्वारा किया गया है। उनके अनुसार किरण बेदी की कहानी मुश्किल हालात में दुनिया के हर आदमी के मन में आशा जगाती है। किरण बेदी ने 'इट इज ऑलवेज पॉसिबल' और 'डियर टू डू' जैसी पुस्तकें भी लिखी हैं।

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