हर खेल में हार जीत तो लगी रहती है। लेकिन क्रिकेट में इंडिया के हारने और जीतने पर महेंद्र सिंह धोनी ने हमेशा खेल को सामान्य तरीके से ही देखा है। वह ना तो अधिक उत्साहित होते है और ना ज्यादा दुखी। परन्तु ऐसा पहली बार हुआ है कि कल उनके चेहरे से खेल के प्रति मायूसी झलकी। यह मायूसी उनके चेहरे पर उनके 15 साल के करियर में कभी नहीं दिखाई दी थी।
महेंद्र सिंह धोनी ने अपने सिक्सर के जरिये ही 2011 के वर्ल्ड कप का फाइनल ख़त्म किया था और 1983 के बाद से भारत को दूसरी बार वर्ल्ड कप जिताया था। परन्तु धोनी न्यूजीलैंड के खिलाफ खेले गए मैच में चूक गए। इस मैच में वह आखिरी पल तक मैदान में बड़ी ही सूझबूझ के साथ खेल रहे थे। मैच में एक ओर रवींद्र जडेजा बड़े शॉट खेल रहे थे तो वहीं धोनी धैर्य के साथ पारी को आगे ले जा रहे थे। वह हर एक गेंद के डाले जाने के बाद जडेजा को समझा भी रहे थे कि किस तरह खेलना है।
महेंद्र सिंह धोनी और रवींद्र जडेजा की जोड़ी ने जीत की उम्मीद तक जगा दी थी परन्तु रवींद्र जडेजा 46वें ओवर में आउट हो गए। रवींद्र जडेजा के बाद धोनी ने अकेले मोर्चा भी संभाला इतना ही नहीं 48वें ओवर में एक शानदार छक्का भी लगाया। लोगो को लगा की अब इंडिया की जीत निश्चित है। परन्तु धोनी 48वें ओवर में रनआउट हो गए हालाँकि धोनी अपनी रनिंग के लिए जाने जाते हैं। इसके बाद ही टीम इंडिया की हार होना तय हो गया।
धोनी यदि मैच के अंत तक टिके रहते हो शायद इंडिया की जीत निश्चित थी। धोनी जब रन आउट होने के बाद पवेलियन जा रहे थे तो वह बहुत ही मायूस थे। मैदान से बाहर निकलते समय उनके कदम आगे नहीं बढ़ रहे थे।