ईरान और अमेरिका के संबंध दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं। अभी इन दोनों देशों के बीच तनाव अपने चरम पर है। हालांकि अमेरिका के राष्ट्रपति ने यह स्पष्ट किया है कि वे ईरान से युद्ध नही चाहते लेकिन ईरान ने कहा है कि यदि अमेरिका के साथ युद्ध होता है तो वह खाड़ी के देशों में अमेरिकी जहाजों को आसानी से निशाना बना सकता है।
ईरान के आईआरजीसी के डिप्टी कमांडर सलेह जोकर ने कहा कि, ‘हमारी कम दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें भी अमेरिकी युद्धपोतों को खाड़ी के देशों में आसानी से निशाना बना सकती हैं।’ उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका की स्थिति सामाजिक और मानव संसाधन के मामले में काफी कमजोर है इसलिए वह एक और युद्ध नही झेल सकता।
तनाव के इस माहौल में ईरान के राजनयिक कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाया जाए और न्यूक्लियर डील के संबंध में अमेरिका के विरोध को कम किया जाये। इन दिनों ईरान और अमेरिका बहुत मुखर होकर एक दूसरे का विरोध कर रहे हैं। तेल के 4 टैंकरों पर हमले के बाद अमेरिका ने अपने कुछ राजनयिकों को भी वापिस बुला लिया है।
ईरान के साथ ओबामा सरकार ने एक न्यूक्लियर डील की थी जिसे ट्रंप ने 2015 में ख़त्म कर दिया था। अब इसके कारण ईरान पर सख्त आर्थिक प्रतिबंध लग गए हैं। अमेरिका की इस सख्ती से ईरान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। अमेरिका ने भारत, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों को आयात में मिलने वाली छूट को भी रद्द कर दिया है।
ईरान के अनुसार अमेरिका खाड़ी के देशों में अपनी सैन्य हिस्सेदारी को बढ़ाने के लिए आर्थिक प्रतिबंध लगा रहा है। अमेरिका ईरान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाने की कोशिश भी कर रहा है। ईरान के अनुसार अमेरिका ऐसा मनोवैज्ञानिक लाभ लेने के लिए तथा राजनीतिक बयानबाजी के लिए कर रहा है।
दूसरी ओर अमेरिका के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के अनुसार अमेरिका ईरान से बातचीत के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि इस दोनों देशों के बीच के तनाव को दूर करने के लिए ईरान को आगे आना चाहिए और बातचीत के लिए तैयार रहना चाहिए। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कई बार ईरान के नेताओं के बातचीत की अपील भी कर चुके हैं। दोनों देशों के बीच बढ़ते हुए तनाव के मद्देनज़र अमेरिका ने एयरक्राफ्टर करियर भी तैयार कर लिए हैं।
ईरान की सेना के प्रमुख जनरल अब्दुलरहीम मौसवी ने कहा है कि यदि दुश्मन देश हमारी ताकत का गलत अंदाजा लगाता है तो यह उसकी बड़ी रणनीतिक भूल होगी। उन्होंने कहा कि हम उन्हें ऐसा जवाब देंगे कि उन्हें अफ़सोस होगा। वहीँ दूसरी और ईरान के रेवोल्यूशनरी गार्ड के अधिकारी के कहा कि ईरान की मिसाइलें फारस की खाड़ी में स्थित युद्धपोत और पश्चिम एशिया की किसी भी हिस्से में आसानी से पहुँच सकती है। एक अर्ध सरकारी समाचार एजेंसी फ़ार्स के अनुसार ईरान की मिसाइलें 2 हज़ार किलोमीटर तक जा सकती हैं और क्षेत्र की किसी भी ठिकाने को अपना निशाना बना सकती हैं।
ईरान की संसद के नेशनल सिक्योरिटी कॉउंसिल के प्रमुख हश्मतुल्लाह के अनुसार अमेरिका और ईरान के उच्च अधिकारियों ने दोनों देशों के बीच युद्ध की संभावना से इंकार किया है। उनके अनुसार तीसरी ताकतें विश्व के एक बड़े हिस्से को तबाह करना चाहती हैं।
ईरान के नेता यातुल्लाह खुमैनी के अनुसार ईरान अभी नयी न्यूक्लियर डील पर काम करने के लिए तैयार नही है। ईरान ने कहा उसके पास परमाणु बम बनाने की पूरी क्षमता है। ईरानी नेताओं के अनुसार उन पर प्रतिबन्ध थोपे गए हैं। वहीँ ट्रम्प का मानना है कि नए आर्थिक दबाव के मद्देनज़र ईरान अपने न्यूक्लियर कार्यक्रमों पर रोक लगाएगा और ईराक, सीरिया और यमन पर उसकी पकड़ कमज़ोर होगी। ईरान के साथ युद्ध के सवाल पर अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि वे ईरान के युद्ध नही चाहते। उन्होंने कहा कि ईरान जल्द ही बातचीत के रास्ते पर आ जाएगा।
वैश्विक प्रतिबंधों के चलते ईरान में मंहगाई 40 प्रतिशत तक बढ़ गई है। ईरान के परमाणु कार्यक्रमों पर भी इन प्रतिबंधों का बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। 2015 में जब राष्ट्रपति हसन रूहानी ने देश के परमाणु गतिविधियां सीमित करने को लेकर सहमति दी तब उसे प्रतिबंधों में कुछ राहत मिली थी। अब नए प्रतिबंधों के साथ ईरान की अर्थव्यवस्था फिर से चौपट हो रही है। ईरान के विदेश मंत्री ने ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी से अपील की है कि वे अमेरिकी प्रतिबंधों से ईरान की अर्थव्यवस्था को बचाएं।
ओबामा सरकार के दौरान ईरान के साथ अमेरिका ने एक परमाणु समझौता किया था। इस समझौते को ट्रम्प सरकार ने ख़त्म कर दिया है। इसी की चलते दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। इस समझौते के समाप्त होने से ईरान से तेल आयात करने वाले देश भी काफी प्रभावित हो रहे हैं।