प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वर्तमान यानी दूसरे कार्यकाल में कुछ ही महीने में इतने सारे बड़े फैसले हुए हैं जिससे आम लोगों की उम्मीदें और ज्यादा बढ़ गई है। पिछले कुछ ही महीने में तीन वर्षों से लंबित रहे तीन तलाक, धारा 370, राम मंदिर और नागरिकता संशोधन अधिनियम पर कदम आगे बढ़ा देने के बाद सरकार भी अपने अगले मसलों को चुनने में काफी सोच विचार कर रही है। चूँकि ये सारे बड़े फैसलों पर देश के कुछ हलकों में विरोध भी हुए हैं पर ज्यादातर भारतीय लोग इन फैसलों से खुश हैं इसलिए इन छिटपुट विरोधों का मोदी सरकार पर कोई ज्यादा असर भी होता नजर नहीं आ रहा है। बहरहाल विरोधों के बाद भी मोदी सरकार के पाइप लाइन में ऐसे कई मामले हैं जिसपर आने वाले दिनों में फैसले लिए जा सकते हैं। आइये जानते हैं ये फैसले कौन कौन से हो सकते हैं।

पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करना

भाजपा हमेशा से देश में समान नागरिक संहिता अर्थात Uniform Civil Code लागू करने की बकालत करता आया है। यह भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र का एक बड़ा वादा भी रहा है। इस बाबत भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में कहा गया था कि 'भारतीय संविधान में वर्णित अनुच्छेद 44 में राज्य के नीति निदेशक तत्वों के तहत समान नागरिक संहिता का प्रावधान है।' भाजपा हमेशा से यह मानती आई है कि ​जब तक भारत में समान नागरिक संहिता लागू नहीं होगी तब तक लैंगिक समानता नहीं आ पायेगी। बहरहाल जिस तरह भाजपा इस बार अपने सारे वादों को मूर्त रूप देती जा रही है उसी कड़ी में अगर अगला फैसला समान नागरिक संहिता से जुड़ा हो तो आश्चर्य की बात नहीं होगी।

भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर-NRC

भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जिसे NRC के नाम से जाना जाता है को भी हमेशा प्रमुखता मिली है। ग़ौरतलब है की देश के कई राज्यों में अवैध आप्रवासन के चलते व्यापक पैमाने पर सांस्कृतिक और भाषाई परिवर्तन आ गए हैं, इस परिवर्तन की वजह से स्थानीय लोगों की जीविका और रोजगार पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। ये असर नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजनशिप तैयार करने से थोड़ा रुकेगा या फिर  होगा वो आधिकारिक तरीके से होगा। यही सब कुछ कारण है जिसकी वजह से भाजपा जल्द ही देश भर में NRC लागू कर सकती है।

एक देश एक चुनाव

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और चुनावों को लोकतंत्र का त्यौहार माना जाता है। हमारे देश में हर साल कोई ना कोई चुनाव होते रहते हैं जिसकी वजह से देश की अर्थव्यवस्था पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ता है। इसी चुनावी खर्च को काम करने के लिए भाजपा एक देश एक चुनाव के मसले पर भी गंभीर है और आने वाले वक़्त में इस तरह भी कदम बढ़ाया जा सकता है।