भारत का हृदय कहे जाने वाले मध्यप्रदेश राज्य में बहुत सारे शहर प्रमुख है पर बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन की तो बात ही निराली है। उज्जैन शहर का प्राचीन नाम उज्जयिनी था। यह शहर क्षिप्रा नदी के किनारे बसा हुआ है। उज्जैन को राजा विक्रमादित्य ने अपने राज्य की राजधानी बनाई थी। यहाँ 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भी है। जिसके दर्शन करने के लिए पूरी दुनिया से लोग आते है।

इतिहास

उज्जैन शहर का उल्लेख तो पुराणों में भी किया गया है। प्रभु श्री कृष्ण और बलराम ने यहाँ के संदीपनी आश्रम से विद्या प्राप्त की थी। यहाँ राजा विक्रमादित्य ने अपनी प्रजा का पालन निस्वार्थ भावना से किया था। उज्जैन शहर में इतिहास से जुड़े कई प्राचीन तथ्य है जैसे उज्जैन के कई मंदिर, यहाँ का कुम्भ का मेला, राजा विक्रमादित्य से जुड़े सिंहासन इत्यादि। ऐसा कहा जाता है की महाकवि कालिदास ने अपने काव्य “मेघदूत” में उज्जैन नगर का बड़ा की मनोहारी वर्णन किया है। महाकवि कालिदास राजा विक्रमादित्य के नो रत्नो में से एक थे।

उज्जैन के प्रसिद्ध मंदिर

महाकालेश्वर मंदिर

यह मंदिर भगवान शिव का मंदिर है, यहां भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है। यह मंदिर विश्वविख्यात 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह शिवलिंग एक पूर्ण शिवलिंग एवं दक्षिणमुखी शिवलिंग है। यहाँ पूरे विश्व में एकमात्र होने वाली भस्मारती भी की जाती है जिसमे बाबा महाकाल को मृत मनुष्य के चिता की राख से श्रंगार किया जाता है यह आरती प्रतिदिन सुबह 4 बजे की जाती है। हालांकि अब सरकार द्वारा प्रतिबंध लगा देने के कारण चिता भस्म के बजाय सामान्य भस्म से आरती की जाती है। महाकाल मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह स्वयंभू शिवलिंग है, अर्थात इस शिवलिंग की स्थापना किसी ने नहीं है। महाकाल स्वयंभू पूर्ण और दक्षिणमुखी होने के कारण अत्यंत पुण्यदायी मानी जाती है।

गोपाल मंदिर

उज्जैन शहर का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर उज्जैन का गोपाल मंदिर है। इस मंदिर में भगवान द्वारकाधीश, भगवान शंकर, माता पार्वती और गरुड़ भगवान की मूर्तियाँ है। यहाँ जन्माष्टमी के अलावा हरिहर का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हरिहर के समय भगवान महाकाल की सवारी रात बारह बजे आती है तब यहाँ हरिहर मिलन अर्थात विष्णु और शिव का मिलन होता है। यह मंदिर शहर के व्यस्त इलाके में स्थित है।

कालभैरव मंदिर

उज्जैन के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक कालभैरव मंदिर भी है। यह भी एक प्राचीन मंदिर है। कालभैरव के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यह बाबा महाकाल के सेनापति है। इस मंदिर की यह विशेषता है कि यहाँ की कालभैरव की प्रतिमा मदिरापान करती है। अंग्रेजो के शासनकाल में इस मदिर के पीछे कई बार खुदाई भी की गयी है पर आज तक इस रहस्य का कोई भी पता नहीं लगा पाया कि वह मदिरा कहाँ जाती है।

मंगलनाथ मंदिर

पुराणों में यह मान्यता है कि उज्जैन नगर में मंगलनाथ एक ऐसी जगह है जहाँ से मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई है। जिनकी कुंडली में मंगल भारी होता है वह अपने अनिष्ट ग्रहो को शांत करने के लिए यहाँ पूरे विश्व से लोग आते है। यहाँ करवाई जाने वाली पूजा इसलिए खास महत्व रखती है क्योंकि यहाँ मंगल गृह की उत्पत्ति हुई है।

हरसिद्धि मंदिर

52 शक्तिपीठो में से एक माता सती का यह मंदिर है। यहाँ पर माँ की कोहनी गिरी थी। कहा जाता है कि अवन्तिकापुरी की रक्षा के लिए आस-पास देवियों का पहरा है, उन देवियों से एक हरसिद्धि देवी भी हैं।

सिंहस्थ कुम्भ

12 वर्षो में एक बार आने वाले स्नान पर्व भी उज्जैन शहर की एक विशेषता है। इस सिंहस्थ कुंभ में पूरे विश्व से लोग आते है। सिंहस्थ कुंभ में मुख्य आकर्षण ऋषि मुनियो का रहता है। सिंहस्थ कुंभ में कठोर से कठोर तपस्या करने वाले साधु संत हिस्सा लेते है जिनका आशीर्वाद लेने के लिए धर्म प्रेमी जनता दूर दूर से आती है। उज्जैन में जब मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरु आता है तब सिंहस्थ कुंभ का आयोजन किया जाता है। जब समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश झलका था तब जो योग थे उसी प्रकार की ग्रहो की स्थिति जब होती है तब सिंहस्थ कुंभ का आयोजन किया जाता है।

उज्जैन कैसे पहुंचे ?

रेल मार्ग द्वारा पूरे भारत से उज्जैन शहर तक पहुंचने के लिए रेल व्यवस्था है। हवाई मार्ग के लिए इंदौर शहर सबसे उपयोगी है क्योंकि इंदौर शहर पूरे देश के हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है और उज्जैन शहर इंदौर से मात्र 55 किलोमीटर की दूरी और स्थित है। इंदौर से उज्जैन जाने के लिए बस व्यवस्था भी है रेल व्यवस्था भी है। इसके अलावा रोड मार्ग द्वारा भी आप बहुत ही सरल तरीके से यहाँ तक पहुंच सकते हो।