उधम सिंह: एक ऐसा क्रांतिकारी जिसने अंग्रेजों की करतूतों का जवाब उनके घर में घूसकर दिया

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Punctured Satire
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उधम सिंह: एक ऐसा क्रांतिकारी जिसने अंग्रेजों की करतूतों का जवाब उनके घर में घूसकर दिया

जलियांवाला बाग हत्याकांड अंग्रेजी हुक़ूमत का सबसे भयावह चेहरा था। इस दिन एक क्रांतिवीर का हृदय नफ़रत और बदले की भावना से धधक उठा। उसने प्रण किया कि जब तक इस नरसंहार के ज़िम्मेदार जनरल डायर और माइकल ओ डायर को वह मौत के घाट नहीं उतरेगा तब तक चैन से नहीं बैठेगा। वह वीर क्रांतिकारी कोई और नहीं बल्कि उधम सिंह थे। उस समय उनकी उम्र महज 20 साल थी।

उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम नाम के गाँव में हुआ था। उनके बचपन का नाम शेर सिंह था। उनका एक भाई भी था - मुख्ता सिंह। उधम सिंह 7 साल की उम्र में ही अनाथ हो गए थे। पहले माँ और उसके बाद उनके पिता की मृत्यु हो गई। माता-पिता की मृत्यु के बाद दोनों भाइयों को अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय में रहना पड़ा। यहीं पर उन्हें उधम सिंह नाम मिला। उनके भाई का नाम साधु सिंह रखा गया।

उधम सिंह सर्वधर्म समभाव की धारणा पर यकीन करते थे इसलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आज़ाद रख लिया था। ये भारत के तीन प्रमुख धर्मों - हिन्दू, मुस्लिम और सिख का प्रतिनिधित्व करता है। 1917 में उनके भाई की मौत हो गई थी। 1919 में उन्होंने अनाथालय को छोड़ दिया।

13 अप्रैल को जब अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ तो उधम सिंह ने इस भयानक मंज़र को अपनी आँखों से देखा था। हज़ारों की संख्या में निहत्थे लोगों की हत्या ने उनके मन झकझोर कर रख दिया था। उनके दिल में भारतीयों की हत्या का बदला लेने की ज्वाला धधक उठी। उन्होंने वहां की मिट्टी को हाथ में लेकर पंजाब के तत्कालीन गर्वनर माइकल ओ’ ड्वायर को सबक सिखाने का संकल्प ले लिया।

इसके बाद वे अपने मिशन पर चल पड़े। उन्होंने इस दौरान दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, ब्राजील और ज़िम्बाब्वे की यात्रा भी की। उद्धम सिंह जनरल डायर को मारने के लिए लंदन पहुँचते उससे पहले ही बीमारी के चलते उसकी मौत हो गयी थी। लेकिन माइकल ओ’ ड्वायर अभी भी ज़िंदा था। अब उन्होंने पूरा ध्यान माइकल ओ’ ड्वायर की हत्या पर केंद्रित कर लिया था।

आख़िरकार वह दिन आ ही गया जब वे पूरी योजना के मुताबिक वे माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर की रिवॉल्वर से हत्या करने वाले थे। लंदन के काक्सटन हॉल में 13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की बैठक थी। इस बैठक में माइकल ओ’ ड्वायर भी आने वाला था।

इस बैठक में उधम सिंह भी शामिल हुए। उन्होंने एक मोटी किताब में अपनी रिवॉल्वर छिपा रखी थी। इसके लिए उन्होंने पुस्तक के अंदर के पन्नों को रिवॉल्वर के आकार में काट लिया था। बैठक के बाद दीवार के पीछे से उधम सिंह ने माइकल ओ’ ड्वायर पर दना-दन दो गोलियां दाग दी। इस हमले से तुरंत ही ओ’ ड्वायर की मौत हो गई और उधम सिंह ने अपना प्रण पूरा करके जलियांवाला बाग के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की।

माइकल ओ’ ड्वायर को मारने के बाद उधम सिंह ने वहां से भागने का कोई प्रयास नहीं किया। उन्हें 4 जून को इस मामले में दोषी ठहराया गया तथा 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। ब्रिटेन ने 1974 में उनके अवशेष भारत को सौंपे। अंग्रेजों को उन्हीं के घर में घूसकर मारने की ये घटना वाकई उनके अदम्य साहस की परिचायक थी।

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