26 नवबंर 2019 के दिन शिवसेना सुप्रीमों उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ़ हो गया। 28 नवंबर के दिन महाराष्ट्र की राजनीति के इतिहास में पहली बार ठाकरे परिवार से कोई सत्ता को आधिकारिक रूप से सम्हालेगा।
ऐसा कहा जा रहा है की बाला साहब ठाकरे ने ये सपना देखा था की महाराष्ट्र में फिर एक बार शिवसेना का सीएम बने। इस सपने को हकीकत बनाने में शिवसेना भाजपा के साथ की अपनी वर्षो पुरानी दोस्ती को तोड़ने में भी नहीं घबराई।
बहरहाल ऐसा पहली बार नहीं है जब उद्धव ठाकरे ने अपनी महत्वकांक्षा के लिए किसी की बलि चढ़ाई है। जब महाराष्ट्र में बाला साहेब निर्विवाद नेता थे उस वक़्त उनके दो सिपहसालार थे उद्धव और राज। पर जब बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत सम्हालने की बारी आई तब उद्धव ने अपने चचेरे भाई राज ठाकरे की बलि चढाने में संकोच नहीं की थी।
दरअसल उद्धव राजनीति में उतने सक्रीय नहीं थे और उनका मन फोटोग्राफी में ज्यादा रमता था पर राज ठाकरे दबंग और मुखर थे साथ ही साथ राजनीति में भी सक्रीय रहते थे। शिवसैनिक उनमे बाल ठाकरे की छवि देखते थे। पर साल 2004 में बाल ठाकरे ने भतीजे पर बेटे को तबज्जो दी और उद्धव को बाकायदा शिवसेना का अध्यक्ष घोषित कर दिया। उद्धव को शिवसेना औपचारिक रूप से सम्हालने में करीब एक दशक लगा और साल 2013 में शिवसेना की पूरी ज़िम्मेदारी उन्होंने संभाल ली। इस बीच राज ठाकरे के मन में खटास बढ़ी और 2006 में राज ठाकरे मातोश्री से अलग हुए और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना नाम से उन्होंने अलग पार्टी बना ली। कुछ इस तरह राज ठाकरे को अपने रास्ते से हटा कर शिवसेना के सुप्रीमों बने उद्धव।
शिवसेना पर अपना एकाधिकार जमाने के बाद अब एक बार फिर उद्धव अपने और अपनी पार्टी के सबसे पुराने सहयोगी की बलि चढ़ा कर महाराष्ट्र की सत्ता सम्हालने वाले हैं।