आज स्वामी विवेकानंद जी हमारे साथ नहीं है लेकिन उनके विचार आज भी जीवित है। उनके विचार इतने प्रभावशाली है कि उनका असर आज भी देश के युवाओं में देखा जा सकता है। 4 जुलाई, 1902 को एक बीमारी के चलते वह परलोक सिधार गये थे। स्वामी विवेकानंद जी ने हिंदुओं को एक नई दिशा दी थी। वह एक बहुत ही कुशल दूरदृष्टा भी थे। उन्होने अपने तर्क के माध्यम से पश्चिमी समाज को यह बतलाया कि अगर कोई मनुष्यता का पाठ पढ़ा सकता है साथ ही उनके जीवन में परोपकार, शांति, सद्भाव और दूसरे मत के प्रति आदर की भावना को जगा सकता है तो वह है केवल भारत का हिन्दू धर्म और दर्शन है।
जानकारी दे दें की स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 को हुआ था। उनके घर का नाम नरेंद्र दत्त था। स्वामी विवेकानंद जी के पिता श्री विश्वनाथ दत्त का विश्वास पाश्चात्य सभ्यता में था। जिसके कारण वह अपने बेटे नरेंद्र को भी अंग्रेजी पढ़ा कर पाश्चात्य सभ्यता सिखाना चाहते थे। परन्तु बचपन से नरेंद्र की बुद्धि बड़ी तीव्र थी और उनकी लालसा परमात्मा को पाने की थी। इसके लिए वह सबसे पहले ब्रह्म समाज में गए परन्तु वहाँ उन्हें आत्मसंतुष्टि नहीं मिली। उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त की सन् 1884 में मृत्यु हो गई। जिससे घर का भार नरेंद्र पर आ गया। घर की हालत बहुत खराब थी। गरीबी में भी वह अतिथि का पूरा सत्कार करते थे।
नरेंद्र जी ने परमहंस की प्रशंसा सुनी और उनके पास गए परन्तु परमहंसजी ने नरेंद्र को देखते ही पहचान लिया। परमहंसजी की कृपा दृष्टि से नरेंद्र को आत्म-साक्षात्कार हुआ और वह परमहंसजी के शिष्यों में प्रमुख भी हो गए। जब उन्होंने संन्यास लिया तो उसके बाद उनका नाम विवेकानंद हो गया। उन्होंने अपना जीवन अपने गुरूदेव स्वामी रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर दिया था और वह अपने गुरु की सेवा में लग गये।
स्वामी परमहंस 16 अगस्त 1886 को परलोक सिधार गये। इसके बाद 1887 से 1892 के मध्य स्वामी विवेकानंद अज्ञातवास में एकान्तवास में साधनारत रहने के उपरांत भारत-भ्रमण पर रहे। स्वामी विवेकानंद प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु और वेदान्त के विख्यात गुरु थे। उन्होंने 1893 में अमेरिका स्थित शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की तरफ से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। स्वामी विवेकानंद के कारण ही भारत का वेदान्त अमेरिका, यूरोप के देशों में पहुँच सका था। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना भी की। इतना ही नहीं विवेकानंद को अमरीका में दिए गए अपने भाषण की शुरुआत “मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों” से करने के लिए भी जाना जाता है।