वीरता, राष्ट्रप्रेम और बलिदान की अनूठी कहानी के योद्धा थे महान महाराणा प्रताप

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Nikhil Talwaniya
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वीरता, राष्ट्रप्रेम और बलिदान की अनूठी कहानी के योद्धा थे महान महाराणा प्रताप

भारत-वर्ष में कई ऐसे राजा और योद्धा हुए है जिन्होंने मृत्यु को गले लगाना पसंद किया पर किसी की अधीनता मंजूर नहीं की। पृथ्वीराज चौहान, शिवाजी महाराज, राणा सांगा, महाराणा प्रताप जैसे कई राजा हुए है इस देश में जिन्होंने कई बार बाहरी आक्रमणकारीयों को परास्त किया है। आइए आज हम आपको बताते है महाराणा प्रताप के बारे में कुछ दिलचस्प बाते।

महाराणा प्रताप जिनका नाम सुनते ही मुग़ल धर धर कापते थे, अकबर जिसका साम्राज्य तुर्क से लेकर दिल्ली तक था। उसने लगभग पूरे भारत पर अपना इस्लामिक परचम लहरा दिया था वो भी महाराणा प्रताप के समक्ष युद्ध में लड़ने से डरता था।

महाराणा प्रताप का जन्म और परिवार

महाराणा प्रताप का जन्म सिसोदिया राजवंश में महाराज उदयसिंह और महारानी जयवंता बाई के यहाँ 1540 ई. में हुआ था। ये राणा सांगा के पौत्र थे। इनकी माता जयवंता बाई पाली के राजपूत अखरोज की पुत्री थी। प्रताप राणा उदयसिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। महाराणा प्रताप के कुल देवता एकलिंगजी महादेव है। इनके मंदिर की स्थापना 8वी शताब्दी में बप्पा रावल ने करवाई थी।

महाराणा प्रताप बचपन से ही बहादुर थे। इसका परिचय उन्होंने बचपन में राणा उदयसिंह और अफगान बादशाह के बीच जब युद्ध हुआ तो उन्होने बड़ी बहादुरी और अपनी बुद्धिमता से हारे हुए युद्ध को विजय दिलवाकर साबित किया था। इसके बाद राणा उदयसिंह ने सोच लिया था कि महाराणा प्रताप ही होंगे मेवाड़ के उत्तराधिकारी।

महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक

कई जगह ये अंकित है कि राणा उदयसिंह को उनकी छोटी रानी “भटियानी रानी” से बहुत स्नेह था और भटियानी रानी के कहने पर राणा उदयसिंह ने मेवाड़ की राजगद्दी भटियानी रानी के पुत्र जगमाल को दे दी थी और कुंवर जगमाल को मेवाड़ का राजा बना दिया गया। पर वास्तव में राणा उदयसिंह महाराणा प्रताप से बेहद स्नेह करते थे और उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार महाराणा प्रताप करे, और नियम यह कहता है कि जो अंतिम संस्कार करता है उसका सवा महीने तक राज्याभिषेक नहीं कर सकते। इसलिए कुंवर जगमाल मेवाड़ के राजा बने।

कुंवर जगमाल ने अपने पद का दुरुपयोग करके प्रजा को सताना प्रारम्भ कर दिया। यहाँ तक कि कुंवर जगमाल ने महाराणा प्रताप को भी देश निकाला दे दिया था। अंत में जगमाल से परेशान होकर राजपूत सरदारों और मेवाड़ की प्रजा ने महाराणा प्रताप से मिलकर उन्हें राज्य अपने हाथों में लेने का आग्रह किया और सन 1572 में सभी राजपूत सरदारों ने उनका राज्याभिषेक किया।

महाराणा प्रताप का चेतक

चेतक महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम था। चेतक विश्व के सबसे बेहतरीन घोड़ों में से एक था। उसका रंग हंस जैसा स्वेत, बिजली जैसी रफ़्तार, स्थिति को भांपने की बुद्धिमता। आप कह सकते हो कि चेतक का जन्म केवल महाराणा प्रताप के लिए ही हुआ था। महाराणा प्रताप जब युद्ध के लिए जाते थे तो उनके शरीर पर 72 किलो का कवच, 81 किलो का भाला होता था।  इसके साथ ही वे 2 तलवार ले कर चलते थे। उनके शरीर का कुल वजन लगभग 210 किलो  होता था जिसे पहन कर वो चेतक की सवारी करते थे। आप अंदाजा लगा सकते हो कि महाराणा प्रताप की शक्ति क्या होगी और चेतक की शक्ति क्या होगी।

हल्दी घाटी के युद्ध में जब राजपूत सरदारों ने महाराणा प्रताप को युद्धभूमि से जाने के लिए कहा तब वे नहीं माने पर राजपूत सरदारों के अनुरोध के बाद वहां से जाने का फैसला किया। जब वो जाने लगे तो उनके पीछे मुग़ल सैनिक लग गए जिसे चेतक समझ गया और तेज रफ़्तार से वो एक बड़ा पहाड़ी नाला लाँघ गया, और फिर उसकी गति धीरे पड़ने लगी और चेतक ने कुछ समय पश्चात दम तोड़ दिया।

हल्दी घाटी का युद्ध

मातृभूमि की लाज बचाने के लिए इस हल्दी घाटी की भूमि पर असंख्य युद्ध लड़े गए हैं। हल्दीघाटी भारत का प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है, ये उदयपुर से लगभग 27 मील दूर स्थित है। राजस्थान के इतिहास को अपने शब्दों में बयान करने वाले ‘जेम्स टाड’ के अनुसार महाराणा प्रताप की सेना में लगभग 22,000 सैनिक और मुग़ल सेना में लगभग 80,000 सैनिक थे। इस युद्ध का कोई भी निर्णय नहीं निकला। एक तरफ अकबर के पास विराट सेना थी, तो वही दूसरी ओर अकबर की सेना के सामने मुट्ठीभर मातृभूमि के लिए मर मिटने वाले वीर राजपूत और भील सिपाही थे।

इस युद्ध में अकबर की ओर से आमेर के राजा मानसिंह और सलीम (जहाँगीर) ने नेतृत्व किया था। युद्ध प्रारम्भ होते ही महाराणा प्रताप मुग़ल सेना के बीच घुस कर मानसिंह को ढूंढ़ने लगे, मानसिंह तो नहीं मिले पर उन्हें सलीम दिखा और महाराणा प्रताप ने सलीम पर आक्रमण कर दिया। जिसे देखकर अकबर की सेना ने महाराणा प्रताप को चारों तरफ से घेर लिया। उस वक्त मौका देखकर झाला सरदार मन्ना जी ने महाराणा प्रताप का मुकुट अपने सर पर पहनकर वहां से दूर भागे मन्ना जी को प्रताप समझ कर मुग़ल सैनिक मन्ना जी के तरफ भागे वही मौका देख कर महाराणा प्रताप को रणभूमि से दूर जाने के लिए सभी राजपूत सरदारो ने आग्रह किया।

अब्राहम लिंकन की जीवनी में लिखा है कि जब वे भारत के दौरे पर आने वाले थे तो उनकी माँ ने उन्हें हल्दी घाटी की मिट्टी लाने को कहाँ था। “ये उन शूरवीरो के रक्त से सींचि हुई भूमि है जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था।”

महाराणा प्रताप का वनवास

हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप का जीवन पहाड़ों और जंगलों में बीता था। प्रताप चित्तौड़ छोड़ कर अपना जीवन जंगलों में व्यतीत करने लगे। अब आरावली की गुफ़ाएँ ही उनका महल थे और पत्थर की शिला ही उनकी शैया थी। अब महाराणा प्रताप जंगलों में रह कर संघर्ष करते हुए अपनी सभी रियासतों को वापस पाने का कार्य करने लगे और छापामार युद्ध, गोरिल्ला युद्धनीति द्वारा अकबर को कई बार परास्त किया।

महाराणा प्रताप की मृत्यु

महाराणा प्रताप एक साधारण सी कुटिया में अपनी मृत्यु का इंतजार कर रहे थे, उनके आसपास सभी राजपूत सरदार मौजूद थे। राजपूत सरदार महाराणा प्रताप से कहते है कि आपको ऐसा कौन सा दुःख है जिसने आपकी अंतिम समय में शांति भंग कर रखी है। महराणा प्रताप ने उत्तर में कहा कि आप सभी मुझे वचन दो की आपके जीवित रहने तक हमारी इस मातृभूमि पर कोई भी तुर्क अधिकार नहीं कर पायेगा, उसी क्षण सभी राजपूत सरदारों ने राणा बप्पा रावल के सिंहासन पर हाथ रख कर वचन दिया। उसी समय महाराण प्रताप ने अपने प्राण त्याग दिए।  महाराणा प्रताप की मृत्यु पर स्वयं अकबर भी रोया था।
जब जब इस देश में त्याग, बलिदान, राष्ट्रप्रेम, वीरता की बात होगी तब तब महाराणा प्रताप को याद किया जायेगा।

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