'मणिकर्णिका' की चर्चा के बीच जाने इतिहास की दस वीरांगनाओं को जो ज्यादा प्रसिद्ध नहीं रही

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Nikhil Talwaniya
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'मणिकर्णिका' की चर्चा के बीच जाने इतिहास की दस वीरांगनाओं को जो ज्यादा प्रसिद्ध नहीं रही

कंगना रनौत अभिनीत फिल्म मणिकर्णिका हाल ही में रिलीज हुई है। यह झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर आधारित एक फिल्म है। मणिकर्णिका में रानी लक्ष्मीबाई के साहस और बहादुरी को बखूबी दिखाया गया है। आप सभी रानी लक्ष्मीबाई के साहसिक जीवन से तो भलीभांति परिचित है पर आज हम आपको भारत की 10 और योद्धा रानियों के बारे में बतायेंगे जो साहस और बहादुरी के मामले में रानी लक्ष्मीबाई की तरह ही साहसिक रही। इन सभी रानियों की साहसिक कहानियाँ आपको प्रेरणा तो देंगी ही साथ ही आप इनके साहसिक किस्सों को सुनकर आप हैरत में भी पड़ जायेंगे।

आइये जानते है रानी लक्ष्मीबाई की तरह ही कुछ साहसिक योद्धा रानियों के बारे में :

रानी मंगलम

रानी मंगलम प्राचीन भारत के मदुरै राज्य की एक लोकप्रिय प्रशासक थी। शुरूआती दौर में एक महिला होने के कारण उनके शासन कार्य देखने को लेकर कारण मदुरै के लोग ज्यादा खुश नही थे। पर जिस तरह उन्होंने अपने राज्य को एक कुशल और समृद्ध राज्य बनाया लोग आज भी उन्हें याद करते है वह बड़ी कूटनीतिक और राजनीतिक कुशलता रखती थी, और जानती थी कि किसी देश का प्रशासन कैसे चलाया जाता है। रानी मंगलम ने युद्ध के समय में स्वयं को एक सक्षम और कुशल नेता साबित किया।

रानी रुद्रमा देवी

रानी रुद्रमा देवी काकतीय वंश की एक महिला शासक थी। वह भारत में सम्राटों के रूप में शासन करने वाली बहुत कम स्त्रियों में से एक थी। वह दक्षिण भारत के मध्ययुगीन इतिहास का एक सितारा थी। वह भारतीय महिला शासकों के बीच ककतीय वंश में सबसे कम उम्र की रानी थी। जहाँ लोगों का मानना था कि महिला राज्य की उत्तराधिकारी नहीं बन सकती है, इस बात पे वे सभी गलत थे, क्योंकि रूद्रमादेवी के पराक्रम और दृढ निश्चय ने इस बात को साबित किया की महिलाएं पुरुषों से कम नहीं है।

वेलु नचियार

वेलु नचियार पहली महिला क्रांतिकारी रानी थीं जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी। वेलु नचियार उन बहुत ही कम शासकों में एक थी जिन्होंने ना तो सिर्फ अंग्रेजों से अपने राज्य को दोबारा पाया बल्कि 10 वर्षों तक शासन भी किया। सन 1780 में वेलु नचियार ने ना सिर्फ़ अंग्रेज सेना से लोहा लिया बल्कि उनको ज़बरदस्त शिकस्त भी दी।

ओनके ओबव्वा

ओनके ओबव्वा एक ऐसी वीरांगना थीं, जिन्होंने 18वीं शताब्दी में चित्रदुर्ग राज्य की रक्षा हेतु हैदर अली की सेना से अकेले लोहा लिया था और वह भी मूसल को अपना हथियार बनाकर। 18वीं सदी के इतिहास में ओनके ओबव्वा की अपनी अलग ही एक पहचान है। चित्रदुर्ग राज्य में आज भी उनका नाम गर्व के साथ लिया जाता है।

बीबी साहिब कौर

बीबी साहिब कौर एक सिख राजकुमारी थी। सन 1793 में उन्हें प्रधान मंत्री नियुक्त किया गया। उन्होंने ब्रिटिशों के खिलाफ लड़ाई में सेना का नेतृत्व किया और ब्रिटिश जनरल के खिलाफ लड़ाई जीतने वाली पंजाबी सिख महिलाओं में आज भी उनका नाम लिया जाता है।

रजिया सुल्तान

रजिया सुल्तान पहली मुस्लिम महिला शासक थी। वह एक ज़बरदस्त शासक बनी और उन्होंने अपने लोगों के लिए बहुत सारा काम किया। जनता की मुश्किलों को दूर करने के साथ ही वह एक बहुत ही कुशल योद्धा भी थी। रज़िया सुल्तान ने कई लड़ाइयां भी लड़ी और कई नए क्षेत्रों पर कब्ज़ा भी किया। इससे रज़िया सुल्तान का साम्राज्य और मजबूत हुआ। रजिया को दिल्ली के सबसे महान सुल्तानों में से एक माना जाता था। वह बहुत ही साहसी थी।

अब्बाका रानी

अब्बाका रानी, ​​इतिहास की एकमात्र महिला हैं, जो चार दशकों तक पुर्तगालियों के साथ लड़ने और बार-बार परास्त करने का काम करती रही। उनकी अदम्य भावना झांसी की पौराणिक रानी लक्ष्मी बाई और कित्तूर की रानी चेन्नम्मा के बराबर ही हैं। उनकी बहादुरी के लिए, उन्हें अभय रानी के रूप में जाना जाने लगा। वह औपनिवेशिक शक्तियों से लड़ने वाले शुरुआती भारतीयों में से एक थी।

चांद बीबी

चांदबीबी एक ऐसा नाम है, जिन्होंने मुगलों की विशाल सेना का मुकाबला करते हुए उन्हें कड़ी टक्कर दी और दुनिया को नारी शक्ति का दम दिखाया। चांद बीबी को 1595 में सम्राट अकबर की मुगल सेना के खिलाफ अहमदनगर की रक्षा करने के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है।

बेगम समरू

बेगम समरू की कहानी एक युवा लड़की की कहानी है जो एक वक़्त पर कोठों पर नाचती थी और अंततः एक ऐसी महिला बन गई जिन्होंने 55 वर्षों तक एक राज्य का शासन सम्हाला, निश्चित रूप से वे सभी के लिए प्रेरणादायक है। उनकी सच्ची कहानी सरधना के पत्थरों में गूँजती है, जहाँ उन्होंने शासन किया।

कित्तूर चेनम्मा

कित्तूर चेनम्मा कर्नाटक की पूर्व रियासत कित्तूर की रानी थी। ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करने वाली पहली महिला शासकों में से एक, वह कर्नाटक में एक लोक नायक और भारत में स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक बन गई थी। भारत में उन्हें भारत की स्वतंत्रता के लिये संघर्ष करने वाले सबसे पहले शासकों में गिना जाता है।

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