दीपावली के दूसरे दिन हम सभी गोवर्धन पूजा के पर्व के रूप में मनाते है। जैसे माँ लक्ष्मी हम पर कृपा बरसाती है उसी प्रकार गौमाता भी हमे स्वास्थ रुपी धन प्रदान करती है। इस दिन गोधन अर्थात गौमाता की पूजा की जाती है। इसके पीछे भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी एक कथा भी प्रचलित है।

प्राचीन समय में ब्रज की गोपिया गोवर्धन पर्वत के पास छप्पन प्रकार के भोजन का भोग रखकर उमंग के साथ उत्सव मना रही थी तब श्री कृष्ण ने उनसे पूछा की यह उत्सव क्यों मना रहे हो तो उन गोपियों ने बताया कि यह उत्सव मना कर देवराज इंद्र को प्रसन्न करने की कोशिश कर रहे हैं। यह बात सुनकर श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया यदि देवता स्वयं आकर भोग लगाए तो कुछ बात होगी। इस पर गोपियों ने कहा कि आपको इंद्र की निंदा नहीं करना चाहिए। भगवान इंद्र की कृपा से ही वर्षा होती है।

श्री कृष्ण ने बताया कि वर्षा देवराज इंद्र के कारण नहीं गोवर्धन पर्वत के कारण की जाती है। हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। श्री कृष्ण की बात सुनकर गोवर्धन पर्वत की पूजा विधिवत तरीके से करने लगे। इससे भगवान इंद्र क्रोधित हुए और उन्होंने भयंकर वर्षा करना शुरू कर दिया। इस भयंकर वर्षा के कारण पूरे गोकुल में प्रलय का दृश्य उत्पन्न हो गया।

भयंकर वर्षा को देखकर श्री कृष्ण ने सभी गोकुलवासियों को गोवर्धन पर्वत की तराई में अपने सभी गायों और बछड़ों को लेकर जाने का आदेश दिया। भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को कनिष्ठ उंगली पर उठाकर सभी गोकुलवासियों की रक्षा की थी। जब इंद्र को पता चला की श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार है तो इंद्रदेव लज्जित हुए। भगवान श्री कृष्ण ने सात दिन तक अपनी कनिष्ठ उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाये रखा था। तब से ही दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पर्व के रूप में मनाया जाता है।

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को सभी देशवासी बलि पूजा, मार्गपाली आदि उत्सव भी मनाते है। इस दिन तरह तरह के व्यंजनों का भोग लगाकर भगवान को प्रसन्न किया जाता है। इस दिन गोधन की पूजा भी की जाती है। माना जाता है कि इस दिन गौमाता की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।