आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को हर वर्ष गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। बता दें कि इस गुरु पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। महर्षि वेद व्यास की जयंती के अवसर पर ही गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है और गुरु की पूजा की जाती है। देखा जाए तो गुरुओं का सभी धर्मों में अपना अपना महत्व होता है। गुरु पूर्णिमा के इस अवसर पर जानते है गुरु वेदव्यास से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बाते।
वेद व्यास के पिता का नाम महर्षि पाराशर और माता का नाम सत्यवती था। महर्षि वेदव्यास का पूरा नाम कृष्णद्वैपायन है। इन्हे भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। वेद व्यास माता सत्यवती के गर्भ से जन्म लेते ही युवा हो गए थे। उसके बाद वह तप करने चले गए। उन्होंने द्वेपायन नामक एक द्वीप पर तप किया। तप करने के कारण उनका रंग श्याम हो गया था। जिस कारण लोग उन्हें कृष्णद्वेपायन कहने लगे। महर्षि वेदव्यास ने वेदों का विभाग किया जिस कारण उन्हें वेदव्यास नाम मिला। महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की और महाभारत को गणेशजी ने लिखा।
महर्षि वेदव्यास के कुछ महान शिष्य थे जैसे- जैमिन, पैल, सुमन्तु मुनि, वैशम्पायन, रोमहर्षण आदि।
उन्ही के वरदान से कौरवों का जन्म हुआ। संजय को दिव्य दृष्टि भी वेद व्यास ने ही दी थी, जिसके कारण से धृतराष्ट्र को संजय ने युद्ध का संपूर्ण हाल सुनाया था।
ऐसे लोग बहुत ही सौभाग्यशाली होते हैं जिन्हे किसी सद्गुरु से दीक्षा मिली होती है। परन्तु जिन लोगो के गुरु नहीं है वह भी घर में गुरु पूजा कर सकते है। इसके लिए सर्वप्रथम एक श्वेत वस्त्र ले लें और उसमे चावल रखकर उस पर कलश व नारियल रख दें। उसके बाद उत्तराभिमुख होकर सामने शिवजी का चित्र भी रख दें। इसके बाद शिवजी को गुरु मानकर निम्न मंत्र पढ़े। श्रीगुरुदेव का आवाहन करें-
- 'ॐ वेदादि गुरुदेवाय विद्महे, परम गुरुवे धीमहि, तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्।।'
अर्थात हे गुरुदेव! मैं आपका आह्वान करता हूं। इसके बाद यथाशक्ति पूजन करें, नैवेद्यादि आरती करें तथा 'ॐ गुं गुरुभ्यो नम: मंत्र' की 11, 21, 51 या 108 माला जाप करें।
इस तरह पूजा अर्चना पूर्ण करे।