दिलचस्प कहानी: जाने कैसे हुई “गणपति बप्पा मोरया” जयकारे की शुरुआत

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Rishabh Verma
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दिलचस्प कहानी: जाने कैसे हुई “गणपति बप्पा मोरया” जयकारे की शुरुआत

भक्त और भगवान दोनों के कई किस्से आपने सुने होंगे एक ऐसा किस्सा करीब 500 साल पहले का भी है जिसे सुनकर आप अचम्भित हो जाएंगे। यह किस्सा एक भक्त और भगवान का है। इस किस्से में भगवान ने अपने भक्त की इच्छा को पूरी करते हुए उस भक्त का नाम अमर कर दिया था।

14वी शताब्दी में पुणे शहर के चिंचवड़ गांव में एक तपस्वी हुआ करते थे जिनका साधु मोरया गोसावी था। यह संत भगवान गणेश के परम भक्त थे। भगवान गणेश के प्रति साधु मोरया गोसावी की भक्ति इतनी दृढ़ थी की उन्हें एक दिन भगवान गणेश के दर्शन हुए।

भगवान गणेश साधु मोरया गोसावी की भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए। और भगवान गणेश ने साधु मोरया गोसावी की इच्छा पूरी करने के लिए वरदान मांगने को कहा तो साधु मोरया गोसावी ने भगवान गणेश से माँगा की "मैं आपका सच्चा भक्त हूँ मुझे धन दौलत, ऐशो-आराम नहीं चाहिए। बस जब तक ये कायनात रहे तब तक मेरा नाम आपसे जुड़ा रहे।"

भगवान ने साधु मोरया गोसावी की इच्छा पूरी करते हुए यह वरदान दिया की जब जब भगवान गणेश की पूजा की जायेगी तब तब उनका नाम बड़े हर्षोल्लास के साथ लिया जाएगा। इसलिए हम आज "गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया" का जयकारा लगाते हैं।

साधु मोरया गोसावी ने सन 1489 में चिंचवड़ से मोरगांव तक की भगवान श्री गणेश की पालकी निकालने की परम्परा प्रारम्भ की थी जिसे आज उनके वंशज निभा रहे है। चिंचवड़ से मोरगांव तक का सफर करीब 90 किलोमीटर का होता है इस पूरी यात्रा में 3 दिन का समय लगता है। साल में दो बार निकलने वाली यह यात्रा पहली बार माघ महीने में चिंचवड़ से मोरगांव तक जाती है और दूसरी बार इस यात्रा को भाद्रपद के महीने में निकाली जाती है। इस पालकी यात्रा को "मंगलमूर्ति की मोरगांव यात्रा" भी कहा जाता है।

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