चांद पर धरती के सबसे अजीबोगरीब जीव ने बसा ली है अपनी बस्ती, जाने क्या है मामला

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Prabhat Sharma
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चांद पर धरती के सबसे अजीबोगरीब जीव ने बसा ली है अपनी बस्ती, जाने क्या है मामला

चांद पर आजकल एक नयी हलचल देखने को मिल रही है। वहां अत्यंत छोटे जीवों टार्डिग्रेड्स की बस्ती बस चुकी है। यह सालों तक किसी भी परिस्थिति में जिंदा रह सकते है।

क्या है टार्डिग्रेड्स?

बता दे कि टार्डिग्रेड्स या पानी के भालू के नाम से विख्यात अत्यंत सूक्ष्म जीव होते हैं जो कि बिना पानी, बिना खाना, अत्यधिक गर्मी, ठंड में भी सालों साल जिंदा रह सकते है। इतना ही नहीं इस जीव में इतनी क्षमता होती है कि उन्हें रेडिएशन से भी कोई फर्क नहीं पड़ता। टार्डिग्रेड्स की इस ब्रह्मांड में 1000 प्रजातियाँ है। आकार की बात की जाए तो ये जीव एक मिलीमीटर से भी छोटे होते हैं। जानकारी दे दें कि टार्डिग्रेड्स 150 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी को आसानी से बर्दाश्त कर सकते हैं। ठंड में भी ये जीव -272 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रह सकते है।

लेकिन यह सवाल उठ रहा है कि नंगी आंखों से नहीं दिखाई देने वाले ये जीव आखिर चांद पर पहुंचे कैसे? इजरायल के चंद्रमा मिशन में इसका जबाब है। बता दें कि भारत के मिशन चंद्रयान-2 से पूर्व इजरायल ने चांद पर एक सैटेलाइट भेजने का प्रयास किया था। बेरेशीट नामक ये यान चांद तक पहुंचा था परन्तु चांद की सतह पर लैंड करते समय ही क्रैश हो गया। समाचार एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार जब इजरायली यान बेरेशीट को चांद पर भेजा गया तो उसमें एक खास पैकेज था। इस पैकेट को ल्यूनर लाइब्रेरी (चांद का पुस्तकालय) का नाम दिया गया था। इसे बेरेशीट में ऑर्क मिशन फाउंडेशन नाम की संस्था ने रखा था। यह एक गैर सरकारी संगठन है जो कि मानव इतिहास को चांद पर सहेजने का कार्य करता है। 3 करोड़ पन्नों में मानव इतिहास को इस ल्यूनर लाइब्रेरी में रखा गया था। इसमें इंसानों का डीएनए सैंपल और हजारों डिहाइड्रेटेड टार्डिग्रेड्स भी थे।

ऑर्क मिशन फाउंडेशन के चेयरमैन नोवा स्पीवैक ने इस बारे में कहा कि उन्हें आशा है कि जब चांद पर बेरेशीट की क्रैश लैंडिंग हुई तो ये टार्डिग्रेड्स जिंदा बचने में सक्षम रहे।

नोवा स्पीवैक ने कहा है कि यदि ये जीव जिंदा बचे होंगे तो वह चांद के दबाव को आसानी से सह सकते हैं। ग़ौरतलब है कि बेकर यूनिवर्सिटी के टार्डिग्रेड्स एक्सपर्ट प्रोफेसर विलियम का यह कहना है कि यदि ये जीव बच भी गए होंगे तो इन्हें सक्रिय होने हेतु हवा-पानी और खाने की जरुरत पड़ेगी। इसलिए यह कहना मुश्किल है कि वे इतनी जल्दी चांद पर चारों तरफ फैल गए होंगे। वैज्ञानिक इसकी जांच में लगे हुए है।

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