भारतीय सेना का वीर ज्ञान सिंह जिसने अकेले ही जापानियों की बड़ी फ़ौज को दे दी थी शिकस्त

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Prabhat Sharma
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भारतीय सेना का वीर ज्ञान सिंह जिसने अकेले ही जापानियों की बड़ी फ़ौज को दे दी थी शिकस्त

ज्ञान सिंह की वीरता का किस्सा आज भी याद किया जाता है। यह किस्सा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश इंडियन आर्मी के भारतीय जवानों का है। मई 1944 में असम का हिस्सा रहे कोहिमा (अब नगालैंड की राजधानी) में ब्रिटिश इंडियन आर्मी और जापानी सैनिकों के मध्य एक भयंकर युद्ध लड़ा गया था इस युद्ध में नायक ज्ञान सिंह ने अपने शौर्य और साहस से जापानी सैनिकों को परास्त किया था।

उस युद्ध में जापानी सैनिक अपनी विचित्र प्रकार की लड़ाकू स्टाइल के लिए जाने जाते थे। उनके द्वारा युद्ध लड़ने के तरीके को आत्मघाती कहा जाता था। जापानी सैनिक अपने शरीर पर बम बांध कर दुश्मनों की ओर बढ़ते थे और वह दुश्मन सेना की पूरी टुकड़ी एक बार में उड़ा दिया करते थे।

नायक ज्ञान सिंह की मौत के बाद ब्रिटिश अखबार द इंडिपेंडेंट में लिखे गए श्रद्धांजलि लेख में कहा गया था कि यदि जापानी सैनिक ये लड़ाई जीत जाते तो जापान की पहुंच भारत के मैदानी इलाकों तक हो जाती। परन्तु ऐसा नहीं हुआ और उन्हें पीछे हटना पड़ा। ज्ञान सिंह और उनकी रेजीमेंट इस बात को जानती थी कि यदि उन्होंने एक बार जापानी सैनिकों को यहां से पीछे धकेल दिया तो उन्हें वो परास्त नहीं कर पाएंगे।

ब्रिटिश इंडियन आर्मी फरवरी 1945 को इरावादी नदी पार करके मिंज्ञान बंदरगाह पर पहुंचे। वहां पर जापानियों का कब्जा था। अपनी प्लाटून का नेतृत्व नायक ज्ञान सिंह कर रहे थे और पूरी बटालियन में उनकी प्लाटून सबसे आगे चल रही थी।

जब आगे बढ़ने पर मशीन गन से छिपे बैठे जापानी सैनिकों ने बुरी तरह फायर करना शुरू किया तो अपनी ओर के घायल होते सैनिकों की संख्या को ज्ञान सिंह ने देखा और तुरंत भांप गए कि इस परिस्थिति में क्या करना है। उन्होंने अकेले ही आगे बढ़कर दुश्मनों के बंकरों को उड़ाने की ठान ली। अपने साथियों से उन्होंने कहा कि वो अकेले ही आगे बढ़ेंगे साथ ही अपने साथियों को उन्होंने कवर फायर करने के आदेश भी दिए जिससे उन्हें आगे बढ़ने में सरलता हो। फिर ज्ञान सिंह ने एक ऐसी लड़ाई लड़ी जोकि इतिहास बन गई। उन्होंने अकेले ही एक के बाद एक जापानियों के कई बंकर उड़ाए।

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