अभी कुछ दिनों पहले मोदी सरकार द्वारा सामान्य वर्ग के लोगो को आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण देने का प्रस्ताव संसद में पेश किया गया था जिसे बहुमत के संसद के दोनों सदनों में पास किया गया । ये प्रस्ताव सवर्ण समाज के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों लिए बहुत ही फ़ायदेमंद माना जा रहा है।

इस प्रस्ताव पर केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाले जनहित अभियान एवं युवा समानता जैसे संगठन ने सर्वोच्च न्यायलय में याचिका दायर की थी। इस याचिका के अनुसार आरक्षण का आधार आर्थिक नहीं हो सकता। याचिका के अनुसार यह विधेयक संविधान के आरक्षण देने के मूल सिद्धांत के खिलाफ है, यह सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण देने के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक 50% के सीमा का भी उल्लंघन करता है।

इस विधेयक को शीतकालीन सत्र के दौरान दोनों सदनों में पारित किया था और 12 जनवरी 2019 को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया गया जिस पर राष्ट्रपति जी ने अपनी सहमति देकर इसे कानून बना दिया ।

सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार 25 जनवरी को इस मुद्दे पर लगी याचिकाओं विचार विमर्श किया एवं सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े उम्मीदवारों को नौकरी और शिक्षा में आरक्षण देने के केंद्र सरकार के फैसले पर जाँच करने के आदेश दिया, लेकिन आरक्षण कानून पर अमल करने पर रोक नहीं लगाईं।

भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की खंडपीठ ने 103 संवैधानिक संशोधन अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया, जिसमें सामान्य श्रेणी से संबंधित गरीबों को कोटा देने का मार्ग प्रशस्त किया गया था।

पीठ ने कहा, "हम मामले की जांच कर रहे हैं और इसलिए चार सप्ताह के अंदर न्यायालय के समक्ष इसकी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश जारी कर रहे हैं।