हमारा देश सदियों तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा है जिस कारण से आज स्वतंत्रता प्राप्ति के सत्तर साल से अधिक बीत जाने के बाद भी कई लोगों की मानसिकता गुलामों बाली ही नजर आती है। यही गुलामी वाली मानसिकता राजनीति के उच्च स्तर पर भी देखने को मिलती है जब एक ही परिवार के कई लोग सत्ता के शिखर तक पहुँच जाते है। यहाँ बात कांग्रेस पार्टी पर और साथ ही साथ देश की सत्ता पर अपना एकाधिकार समझने वाले गांधी नेहरू परिवार के लोगों को लेकर बहुत ज्यादा देखने को मिलता है। ऐसा नहीं है की और किसी पार्टी में ऐसा परिवारवाद नहीं है पर देश की केंद्रीय सत्ता के शिखर पर सिर्फ इसलिए किसी की दावेदारी बता देना क्योंकि वो एक विशेष खानदान से संबंधित है ये लोकतंत्र संगत कतई नहीं है।

हाल ही में कांग्रेस पार्टी के तरफ से राजनीतिक रूप से अनुभवहीन प्रियंका गांधी को महासचिव नियुक्त करते हुए उत्तरप्रदेश चुनावों की ज़िम्मेदारी दे दी गई। चलो मान लेते हैं की कांग्रेस में सारे नेता इसी परिवारवाद वाली मानसिकता से ग्रसित हैं पर लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाने वाले मीडिया (ख़ास कर के लुटियन मीडिया) को क्या हो गया है? जब से प्रियंका का राजनीति में आगमन हुआ है तब से उनका महिमामंडन इस तरीके से देखने को मिल रहा है जैसे वो कोई बहुत हीं विशिष्ट राजनीतिक शख्सियत हैं। कायदे से प्रियंका को लुटियन मीडिया ने वही दर्जा दे दिया है जो पिछले दो सालों से पेज थ्री या एंटरटेनमेंट पत्रकारिता में सैफ और करीना के बेटे तैमूर अली खान को मिली हुई है।

आजकल लुटियन मीडिया के पत्रकार प्रियंका के नेम प्लेट से लेकर वे क्या खा रही हैं और क्या पी रहीं हैं इसकी भी जानकारी को क्रांतिकारी बता कर उनका महिमामंडन करने में लगे हैं। आइये देखते हैं इन्हीं मीडिया वालों के प्रियंका का महिमामंडन करते हुए किये गए ट्वीट्स को।