अटल जी की सरकार में रक्षामंत्री रहे जॉर्ज फर्नांडिस जी के निधन के बाद आज वो यादें फिर से ताजा हो गयी जिसमे तत्कालीन सरकार पर कांग्रेस पार्टी द्वारा फर्जी घोटाले में फसाया गया था जिससे बाद में अटल जी की सरकार गिर गई और जॉर्ज फर्नांडिस भी फिर कभी इस फर्जी घोटाले की ग्लानि से उबर नहीं पाए।
बता दें की कारगिल युद्ध के दौरान, भारत सरकार ने युद्ध में मारे गए सैनिकों के मृत शरीरों को उनके गृह प्रदेश तक पहुंचाने के लिए अमेरिका की एक कंपनी से 500 ताबूत खरीदे थे। उन ताबूतों की कीमत 2,500 डॉलर प्रति यूनिट थी। कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने इस मसले पर आरोप लगाया था कि ताबूत के खरीद में भारी घोटाला हुआ है क्योंकि भारत द्वारा भुगतान की गई कीमत बहुत अधिक थी। अटल जी की सरकार पर यह आरोप लगाया गया था कि ताबूतों की कीमत, मूल कीमत से तेरह गुना अधिक थी, और भारत को घोटाले में $ 1,87,000 का नुकसान हुआ था। जॉर्ज फर्नांडिस उस समय अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में रक्षा मंत्री थे अतः सारा आक्षेप उन पर आ रहा था।
तब के इस कॉफिन स्कैम और आजकल चल रहे राफेल घोटाले की चर्चा में बहुत सारी समानताएँ हैं जिन्हें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एक बड़े घोटाले के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी बुरी तरह से यह चाह रही है कि 'राफेल घोटाला' बीजेपी के लिए बोफोर्स घोटाला बन जाए, लेकिन यह वास्तव में वह 'कॉफिन घोटाला' है अर्थात एक फर्जी घोटाला है। दोनों ही मामलों में, विपक्षी दल भारत सरकार और संबंधित विदेशी सरकारों द्वारा प्रदान की गई जानकारी की उपेक्षा करते हैं।
कारगिल युद्ध के दौरान, भारत सरकार ने सशस्त्र बलों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले एल्यूमीनियम के ताबूत खरीदने का फैसला किया था। भारतीय सशस्त्र बलों ने अमेरिकी सेना द्वारा विदेशों में शांति अभियानों में इस्तेमाल किए जाने वाले ऐसे ताबूतों को देखा था और भारतीय सेना के लिए भी यही चाहा था। ऐसे ताबूत वास्तव में एल्यूमीनियम के होते हैं जिनका उपयोग सेना द्वारा कठोर परिस्थितियों से मृत सैनिकों की लाशों को बाहर निकाल कर उन्हें सुदूर गृह प्रदेशों तक पहुंचाया जाता है। वर्तमान में जैसे राहुल गांधी खाली राफेल विमान और पूरी तरह से सैन्य सामग्रियों से भरी हुई राफेल विमान की कीमतों की तुलना कर रहे हैं, उसी प्रकार उस समय भी एक घोटाले का आविष्कार किया गया था जिसमे साधारण ताबूतों की तुलना में एल्यूमीनियम के ताबूतों की कीमतों से की गई थी।
उस वक़्त विपक्ष ने इस तथ्य को नज़रअंदाज़ कर दिया था कि भारत दरअसल अमेरिकी सैन्य मानक उत्पाद खरीद रहा था जिसकी तुलना आम जनता के लिए बने उत्पादों से नहीं की जा सकती थी और वर्तमान में फिर एक बार कांग्रेस पार्टी इस तथ्य को अनदेखा कर रही है जिसमे एक खाली विमान को युद्धक साजो सामान से भरे विमान से तुलना किया जा रहा है।
बता दें की तबूट घोटाले में भी अंततः अदालत ने पाया था कि अटल जी की सरकार के दौरान ताबूतों के सौदे में कोई घोटाला नहीं हुआ था। 2013 में, अदालत ने सबूत के अभाव में मामले में नामित तीन सैन्य अधिकारियों को छुट्टी दे दी थी। 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर एनडीए सरकार को क्लीन चिट दे दी थी, क्योंकि सीबीआई जांच के दौरान आरोप साबित नहीं हुए थे। इसी तरह, राफेल सौदे में घोटाले का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, लेकिन अदालत ने फ्रांस से 36 फाइटर जेट खरीदने से जुड़े सभी दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद इस सौदे में जांच के आदेश देने से इनकार कर दिया है।
सोनिया गांधी ने स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी को 'कफन चोर' कहा था और बात अब वही बात दोहराई जा रही है, जिसमें राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी का जिक्र करते हुए “चौकीदार चोर है” कहते पाए जाते हैं।