गांधी के कहने पर पीएम पद छोड़ा पर राष्ट्रपति पद पर सरदार पटेल ने नहीं चलने दी नेहरू की मनमानी

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Nikhil Talwaniya
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गांधी के कहने पर पीएम पद छोड़ा पर राष्ट्रपति पद पर सरदार पटेल ने नहीं चलने दी नेहरू की मनमानी

आज भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल की पुण्यतिथि है। वे अपने विचारों से बेहद ही मजबूत थे इसलिए उन्हें लौह पुरुष की उपाधि भी दी गई थी। इतिहास के पन्नों में हमेशा इस बात को कहा जाता है कि सरदार पटेल को वो पद नहीं मिला जिसके वे वास्तविक हक़दार थे। इस मुद्दे को वर्तमान की मोदी सरकार हमेशा से उठाती हुई आई है।

सरदार पटेल ने देश की आज़ादी के बाद सभी छोटी बड़ी रियायतों को एकजुट करने का सबसे मुश्किल काम अपने हाथों में लिया था। इस काम को लोग असंभव मान रहे थे। सभी राज्यों के विलय के बाद जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने तो वल्लभभाई पटेल को उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बनाया गया था। कुछ दिनों बाद जवाहरलाल नेहरू और वल्लभभाई पटेल के बीच मतभेद हो गए जो महात्मा गांधी के निधन के बाद सही हुई। अपनी असहमतियों को भुलाकर दोनों ने आगे बढ़ने का फैसला लिया गया। परन्तु यह सब ज्यादा समय तक नहीं चल पाया।

दोनों की बीच फिर से मतभेद हो गए थे। 1949 के आखिरी दिनों में भारत ब्रिटिश सम्राट की अगुवाई वाले 'डोमिनयन स्टेट' से एक संप्रभु गणराज्य बनने वाला था और जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि उस समय गवर्नर जनरल के पद पर आसीन सी. राजगोपालचारी को देश का पहला राष्ट्रपति बना दिया जाये परन्तु वल्लभभाई पटेल इस बात से असहमत थे। वे चाहते थे कि शहरी क्षेत्र से आने वाले राजाजी की जगह ग्रामीण क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बने। राजेंद्र प्रसाद ने अपनी किताब 'इंडिया आफ्टर गांधी' में लिखा है कि "नेहरू पहले ही सी. राजगोपालचारी को आश्वस्त कर चुके थे कि राष्ट्रपति वही बनेंगे, लेकिन जब पटेल ने राजेंद्र प्रसाद का नाम आगे किया तो उन्हें बहुत निराशा हुई।"

नेहरू और वल्लभ भाई के बीच का युद्ध आगे और बढ़ा। 1950 में जब कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव होने वाले थे तब वल्लभ भाई ने पुरुषोत्तम दास टंडन का नाम आगे बढ़ाया। नेहरू उनकी इस बात से असहमत थे क्योंकि पुरुषोत्तम दास टंडन एक धुर दक्षिणपंथी नेता थे और यह कांग्रेस के सांप्रदायिक खेमे के माने जाते थे। नेहरू के कई विरोध के बाद भी पुरुषोत्तम दास टंडन आसानी से कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीत गए थे

इन सब घटनाओं के बाद नेहरू ने सी. राजगोपालचारी को एक पत्र लिखते हुए कहा "टंडन का कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर चुना जाना मेरे पार्टी या सरकार में रहने से ज्यादा महत्वपूर्ण समझा जा रहा है। मेरी आत्मा कह रही है कि कांग्रेस और सरकार दोनों के लिए अपनी उपयोगिता खो चुका हूं।" इसके बाद में नेहरू ने सी. राजगोपालचारी को एक पत्र लिखा जिसमे कहा गया "मैं अपने आप को थका हुआ महसूस करता हूँ। मैं नहीं सोचता की आगे संतुष्ट होकर कार्य कर पाऊंगा।"

इन पत्रों के बाद सी. राजगोपालचारी ने दोनों नेताओं के बीच में सुलह करवाने की कोशिश की और पटेल नरम रुख अपनाने पर राजी हुए।

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