5 अगस्त को भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद-370 और 35-A को निष्क्रिय कर दिया था। इन धाराओं को निरस्त करने के बाद सरकार ने जन सुरक्षा अधिनियम के तहत जम्मू कश्मीर के अलगाववादी नेताओं को नजरबन्द किया है। इस अधिनियम के तहत सरकार इन लोगों को 2 वर्षों तक नजरबन्द रख सकती है। हालांकि फारुख अब्दुल्ला पर सरकार ने सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA) लगाया है।
भारत सरकार ने इन नजरबन्द नेताओं के समक्ष एक प्रस्ताव रखा है जिसके अनुसार इन नेताओं से एक सरकारी बॉन्ड साइन करवाया जा रहा है। साइन करने वाले इन नेताओं को किसी भी प्रकार की राजनैतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने का अधिकार नहीं है अगर वे ऐसा करते है तो उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया जायेगा।
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सूत्रों से मिली खबर के अनुसार जम्मू कश्मीर की कई बड़ी राजनैतिक पार्टी के नेताओं ने इस बॉन्ड पर साइन कर दिए हैं। हुर्रियत कॉन्फ्रेन्स के नेता मीरवाइज़ उमर फारूक, के साथ नेशनल कॉन्फ्रेन्स के दो पूर्व विधायकों, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और पीपुल्स कॉन्फ्रेन्स के भी एक-एक नेताओं के साथ दो अन्य लोगों ने इस बॉन्ड को साइन किया है।
इस सरकारी बॉन्ड पर सभी नेताओं से साइन करने के लिए कहा गया था परन्तु कुछ नेताओं ने मना कर दिया है। इन मना करने वाले नेताओं में पीपुल्स कॉन्फ्रेन्स के अध्यक्ष सज्जाद लोन, पीडीपी युवा विंग के नेता वाहीद पारा और नौकरशाह से नेता बने शाह फैसल भी शामिल है। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के उदारवादी गुट की माने तो उनका कहना है कि मीरवाइज ने रिहाई के लिए कोई बॉन्ड नहीं भरा है।