हाल ही में एक ज़बरदस्त फिल्म आई है जिसका हर कोई दीवाना हो गया है। फिल्म है उरी जिसने ना सिर्फ दर्शकों की तारीफ पाई बल्कि साथ ही साथ बॉक्स ऑफ़िस पर भी ज़बरदस्त सफलता दर्ज की है। इस फिल्म का एक डायलॉग है “ये नया हिन्दुस्तान है, ये घर में घुसेगा भी और मारेगा भी।” अब इसी डायलॉग को अगर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के 5 साल पहले के अवतार में और वर्तमान अवतार में तुलना करते हुए एडिट करें तो यह डायलॉग होगा “ये नया केजरीवाल है ये भ्रष्ट नेताओं के घर में घुसेगा भी और उनकी तारीफ करेगा भी।”
पिछले पांच सालों में केजरीवाल ने हर उस इंसान के साथ हाथ मिलाया है जिसको वे 5 साल पहले तक भ्रष्ट कह कर गाली दिया करते थे। शीला दीक्षित, सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, मुलायम सिंह, लालू यादव, मायावती, शरद यादव नामों की लिस्ट बहुत लम्बी है और कभी इन सभी नामों के मुखर विरोधी रहे केजरीवाल आज इन सब के साथ मंच साझा करते हैं और मिल कर आगे बढ़ने की बात करते हैं।
वर्ष 2011 में हुए उस महान लोकपाल आंदोलन जिससे पूरा देश जुड़ा था का फायदा अगर किसी ने उठाया है तो वो सिर्फ केजरीवाल हैं और उनके पार्टी में बचे एक दो लोग हैं। उस आंदोलन में शामिल हुए लोग आज अपने आप को ठगा हुआ महसूस करते होंगे जब वे केजरीवाल को उन्हीं लोगों के साथ खड़े देखते होंगे जिनका विरोध उस आंदोलन में हुआ था। शीला दीक्षित, रॉवर्ट वाड्रा और शरद पवार पर उस दौरान कड़े तेवर दिखाने वाले केजरीवाल के तेवर इन नामों के पक्ष में हो गए हैं।
केजरीवाल के रंग बदलने का नुक्सान अगर किसी को हुआ है तो वो इस आंदोलनों की भूमि भारत देश को हुआ है। निकट भविष्य में ऐसा कोई आंदोलन फिर खड़ा हो पायेगा इसकी संभावना नगण्य है क्योंकि सब के मस्तिष्क में केजरीवाल का चेहरा होगा और वे सोचेंगे की अगर ऐसे लोग ही आन्दोलनों से निकलेंगे तो फिर ऐसे आंदोलन कर के क्या ही फायदा है।
जिन नेताओं को सजा नहीं हुई है वे तो चलो फिर भी समझे जा सकते हैं की राजनितिक मजबूरियों की वजह से साथ होंगे पर लालू यादव जैसे सर्टिफाइड भ्रष्टाचारी का विरोध नहीं करना और उनकी पार्टी का समर्थन करना तो केजरीवाल की राजनितिक गर्त में जाने की पराकाष्ठा ही कहलाएगी।