कई बार आपने यह नारा हिंदुत्ववादी नेताओं के मुंह से सुना होगा जिसमे कहा जाता है कि "अयोध्या तो झांकी है काशी अभी बाकी है।" अब यह नारा कुछ कुछ सही होता भी नजर आ रहा है। दरअसल अयोध्या राम मंदिर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने के बाद अब काशी विश्वनाथ मंदिर मामले पर सुनवाई को हरी झंडी मिल गई है।

ग़ौरतलब है की स्‍वयंभू ज्‍योतिर्लिंग भगवान विश्‍वेश्‍वर की तरफ से पंडित सोमनाथ व्‍यास और अन्‍य लोगों ने वर्तमान विश्वनाथ मंदिर से सटे ज्ञानवापी मस्जिद में नए मंदिर के निर्माण और हिंदुओं को पूजा-पाठ का अधिकार देने आदि को लेकर वर्ष 1991 में स्‍थानीय अदालत में मुकदमा दायर किया था।

इस मामले पर भगवान विश्‍वेश्‍वर के पक्षकारों की तरफ से यह तर्क दिया गया था कि ज्ञानवापी मस्जिद ज्‍योतिर्लिंग विश्‍वेश्‍वर मंदिर का ही अंश है। वहां हिंदू आस्‍थावानों को पूजा-पाठ, राग-भोग, दर्शन आदि के साथ निर्माण, मरम्‍मत और पुनरोद्धार का अधिकार प्राप्‍त है। बता दें की वर्ष 1991 में दायर किये गए इस मुकदमे में पर वर्ष 1998 में हाई कोर्ट ने स्‍टे लगा दिया था जिसके कारण तब से ही इस मामले कि सुनवाई स्‍थगित है। इस मामले को अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय  के अनुपालन में फिर से शुरू की गई है।  

बता दें की इस मामले को दायर करने वालों में से दो वादियों डॉ. रामरंग शर्मा और पंडित सोमनाथ व्यास की मौत हो चुकी है। इनकी मौत के बाद वादी पंडित सोमनाथ व्यास की जगह पर प्रतिनिधित्व कर रहे वादमित्र पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी ने अपने प्रार्थना पत्र में कहा है कि "कथित विवादित परिसर में स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ का शिवलिंग आज भी स्थापित है। देश के बारह ज्योतिर्लिंग में से है, मंदिर परिसर पर कब्जा करके मुसलमानों ने मस्जिद बना दी है। 15 अगस्त 1947 में विवादित परिसर का स्वरूप मंदिर ही था।"

अब इस मामले में वादी ने कोर्ट से भौतिक और पुरातात्विक दृष्टि से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा रडार तकनीक से सर्वेक्षण और परिसर की खुदाई करवाकर रिपोर्ट मंगाने की अपील की है। जिसपर कोर्ट ने विपक्षियों से आपत्ति भी मांगी है। इस मामले पर सुनवाई शुरू होने वाली है और इसकी सुनवाई की तारीख 9 जनवरी 2020 रखी गई है।