कश्मीर में स्थित बाबा अमरनाथ की यात्रा साल में एक बार की जाती है। इस पवित्र अमरनाथ गुफा को करीब सन 1850 में एक मुस्लिम चरवाहा बूटा मलिक ने ढूंढा था। माना जाता है कि इस पवित्र की गुफा की खोज के बाद एक सूफी संत ने इस चरवाहे को एक कोयले से भरी थैली दी थी जो बाद में सोना बन गयी थी। आज जब इस यात्रा को इतना समय हो गया है फिर उस मुस्लिम चरवाहे के वंशज को मंदिर में आये इस चढ़ावे का कुछ हिस्सा दिया जाता है। इस यात्रा के लिए दो मार्ग है पहला पहलगाम मार्ग जहाँ से अमरनाथ गुफा की दूरी 45 किमी है वही दूसरा मार्ग बालटाल से है जिसकी अमरनाथ गुफा से दूरी करीब 16 किमी है।

भगवान शिव की इस पवित्र यात्रा में हमेशा अलगाववादी बाधा बनते आये है। इस बार भी उन्होंने कुछ इस तरह की बाधा उत्त्पन की है जिसके कारण अमरनाथ यात्रा को अभी तक दो बार रोक दिया गया है। पिछले दिनों 8 जुलाई को हिजबुल कमांडर आतंकी बुरहान वानी की बरसी पर इन अलगावादियों ने बंद किया था जिसके कारण यात्रा को जम्मू में ही रोकना पड़ा था। आज फिर इन अलगाववादी संगठन की ज्वाइंट रजिस्टेंस लीडरशीप ने एक दिन के बंद का एलान किया है जिसके कारण आज फिर यात्रा को जम्मू में ही रोकना पड़ा है।

इस पूरी यात्रा पर जम्मू कश्मीर के राजनैतिक संगठन भी सियासत करते नजर आ रहे है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने यात्रा के कारण कश्मीर के लोगों को आ रही परेशानियों का हवाला देते हुए कहा कि "अमरनाथ यात्रा पर आये लोगों के लिए की गई सुरक्षा व्यवस्था कश्मीर के लोगों के विरुद्ध है।" वही दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर पीपल्स मूवमेंट के अध्यक्ष शाह फैसल ने भी कहा कि "अमनरनाथ गुफा में आने वाले तीर्थ यात्रियों का स्वागत है परन्तु तीर्थयात्रा के कारण स्थानीय लोगों पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाया जाना चाहिए।"

अधिकारियों ने बताया है कि एक जुलाई को प्रारम्भ हुई इस अमरनाथ यात्रा में 12 जुलाई 2019 तक समुद्र तल से 3,888 मीटर ऊपर स्थित बाबा अमरनाथ के करीब। 1.44 लाख श्रद्धालुओं ने दर्शन कर लिए है।