गुरुवार को भारतीय स्तंभकार सुनंदा वशिष्ठ टॉम लैंटॉस एचआर द्वारा आयोजित यूएस कॉन्फ्रेंस की बैठक के लिए वॉशिंगटन डीसी गई थी जहाँ उन्होंने 90 के दशक में हिंदुओं के साथ कश्मीर में हुए अन्याय के विषय पर चर्चा की। वहां जाने से पहले एक ट्वीट करते हुए उन्होंने कहा "आयोजन में वह सिर्फ़ कश्मीर से जुड़ी उन कहानियों के बारे में बात करने वाली हैं, जिन्हें लोगों ने कभी नहीं सुना होगा या फिर जिन्हें बताने से हमेशा बचा गया। लेकिन जब उन्होंने वहाँ बोलना शुरू किया और कश्मीरी हिंदुओं पर हुए अत्याचारों की आवाज़ बनीं… तो मानो जैसे सब सिहर गए।"
कश्मीर में हिंदुओं के साथ हुई घटना पर बोलना शुरू किया और उन्होंने कश्मीर के इस्लामिक कट्टरपंथ के कारण कश्मीर की तुलना सीरिया से कर दी। आज से 30 वर्ष पूर्व के समय को याद करते हुए कहा "उन लोगों ने ISIS के स्तर की दहशत और बर्बता कश्मीर में झेली है। इसलिए उन्हें खुशी है कि आज इस तरह मानवाधिकारों की बैठक यहाँ हो रही हैं क्योंकि जब मेरे जैसों ने अपने घर और अपनी जिंदगी सब गँवा दी थी, तब पूरा विश्व शांत था।"
आगे उन्होंने मानवाधिकार के वकालत करने वाले वकीलों से पूछा कि "वे कहा थे जब हमसे हमारे अधिकार छीने गए। कहाँ थे वो लोग जब 19 जनवरी 1990 की रात घाटी के हर मस्जिद से एक ही आवाज़ आ रही थी कि हमें कश्मीर में हिंदू औरतें चाहिए, लेकिन बिना किसी हिंदू मर्द के।"
आगे उन्होंने कहा “इंसानियत के रखवाले उस समय कहाँ थे जब मेरे दादाजी रसोई की चाकू और जंग लगी कुल्हाड़ी लेकर हमें मारने के लिए हमारे सामने केवल इसलिए खड़े थे, ताकि वो हमें उस बर्बरता से बचा सकें, जो जिंदा रहने पर हमारा आगे इंतजार कर रही थी।"
हमे सिर्फ 3 विकल्प दिए गए थे।
कश्मीर छोड़ दो
इस्लाम कबूल कर लो
मर जाओ
कश्मीर के विषय पर चर्चा करते हुए सुनंदा ने अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल को भी स्मरण किया और बताया कि जिसका मजहब इस्लाम नहीं था ISIS ने उसका सर कलम कर दिया था। डेनियल के अंतिम शब्द थे "मेरे पिता एक यहूदी थे, मेरी माता एक यहूदी थी और मैं भी एक यहूदी ही हूँ।"
ग़ौरतलब है कि सुनंदा की यूएस कॉन्फ्रेंस की स्पीच को हर तरफ सराहा जा रहा है। भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी उनकी स्पीच को शेयर करते हुए उन्हें शाबाशी देते हुए कहा "ये वो आवाज़ है, जो सुनी जानी चाहिए।"