साल 2002 में गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगी में 58 कारसेवकों को जला कर मारने की घटना के बाद पूरे गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा फ़ैल गई थी जिसके फलस्वरूप कई लोगों कि मौत हो गई थी। गुजरात में हुए इस दंगे की जांच नानावती-मेहता आयोग ने की थी। इस आयोग की रिपोर्ट को आज विधानसभा में पेश किया गया। इसकी रिपोर्ट में भारत के प्रधानमंत्री एवं गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी गई है।
नानावती-मेहता आयोग ने अपने 1,500 से अधिक पृष्ठों में जारी किये अपने रिपोर्ट में कहा है कि, 'ऐसा कोई सबूत नहीं मिला कि राज्य के किसी मंत्री ने इन हमलों के लिए उकसाया या भड़काया। कुछ जगहों पर भीड़ को नियंत्रित करने में पुलिस अप्रभावी रही क्योंकि उनके पास पर्याप्त संख्या में पुलिसकर्मी नहीं थे या वे हथियारों से अच्छी तरह लैस नहीं थे।' इसके साथ ही इस रिपोर्ट में कहा गया कि 'पुलिस ने दंगों को नियंत्रित करने में सामर्थ्य, तत्परता नहीं दिखाई जो आवश्यक था।' नानावती आयोग ने दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जांच या कार्रवाई करने की सिफारिश की है।
इस दंगे के बाद आयोग ने जांच का पहला हिस्सा 25 सितंबर, 2009 को विधानसभा में पेश किया था। उसके बाद आयोग ने अपनी अंतिम रिपोर्ट गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को 18 नवंबर, 2014 सौंपी थी। उस दिन से आज तक यह रिपोर्ट राज्य सरकार के पास थी।
इस मसले चल रही जनहित याचिका के जवाब में राज्य सरकार ने गुजरात हाईकोर्ट से कहा था कि वह अगले विधानसभा सत्र में इसे विधानसभा में पेश करेंगे। गुजरात सरकार के पूर्व आईपीएस अधिकारी आरबी श्रीकुमार ने एक जनहित याचिका लगाकर इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की गुज़ारिश की थी। गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक श्रीकुमार ने एक हलफ़नामा पेश करके आयोग के सामने गोधरा कांड के बाद फैली सांप्रदायिक हिंसा पर सवाल उठाए थे उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल से इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग भी की थी।