भारत को RCEP पर चर्चा में कई मसलों पर भरोसा नहीं मिल सका। इनमें बाजार पहुंच पर भरोसे की कमी, आयात में बढ़ोतरी से होने वाले अपर्याप्त संरक्षण, नॉन-टैरिफ प्रतिबंधों पर असहमति, RCEP सदस्य देशों के साथ 105 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा और नियमों के संभावित उल्लंघन सम्मिलित है। पर इन सब में सबसे बड़ी वजह चीन है।
इस समझौते से बाहर होने की सबसे बड़ी वजह चीन से आयात को बताया जा रहा है। यदि भारत RCEP समझौता करता है तो सस्ते चाइनीज सामान की भारतीय बाजार में बाढ़ आ जाती। RCEP यानी क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी में 10 आसियान देशों के अतिरिक्त 6 अन्य देश ऑस्ट्रेलिया, भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड भी शामिल है। समझौता करने वाले देशों के मध्य मुक्त व्यापार को बढ़ावा मिल जाता है। जिसके चलते भारत के समझौते में शामिल होने की वजह से चीन को भारतीय बाजार में पैर पसारने का अच्छा अवसर मिल जाता।
भारत का RCEP में शामिल देशों के साथ निर्यात से अधिक आयात होता है। समझौते के अनुसार ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिससे यदि आयात बढ़ता है तो उसे नियंत्रित कर सके अर्थात चीन या किसी अन्य देश के सामान को भारतीय बाजार में पर्याप्त अनुपात में अनुमति देने पर स्थिति साफ नहीं थी।
इस समझौते में शामिल देशों को एक-दूसरे को व्यापार में टैक्स कटौती सहित तमाम आर्थिक छूट देनी होती है परंतु समझौते में नॉन-टैरिफ प्रतिबंधों को लेकर कोई भी भरोसेमंद वादा शामिल नहीं है।